किसने कहा तुमसे
प्यार नसीब में नहीं मेरे
है वह बेशुमार तुम्हारे लिए
पर तुम्हें उसकी कद्र ही नहीं है |
खिची दीवार थी दोनों दिलों के बीच
अलगाव पैदा हुआ अनजाने कारण से
इसे मिटाएं कैसे किस लिए
जितने भी यत्न किये
सफलता से दूरी होती गई
वह पास आकर भी दूर होती गई |
अपनी भूल पर पश्च्याताप
क्या ठीक से कर नहीं पाते
या तुम ही नहीं समझ पाते
अपने प्यार की ऊष्मा को
नन्हें सितारा ही काफी हैं
आसमान में चमकने के लिए
कोई आवश्यकता नहीं है
किसी बड़े से चंद्रमा की
जिसे इतना महत्व् मिलता है
उसके मुखमंडल पर भी दाग है
दुनिया के प्रपंचों से रहे हो दूर
अब तक
फिर हुआ बदलाव अचानक कैसा
क्या प्रेम की डोर है इतनी कच्ची
कि मेरी तुम्हें कोई कद्र ही नहीं है |
आशा
अनुराग विराग दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ! सिक्के का जो हिस्सा ऊपर होता है सामने वाले को उसी का आभास तीव्रता से होने लगता है ! ज़रुरत है सिक्के को धीरे से पलट देने की और यह हमारे ही वश में होता है ! सिक्का खुद अपने आपको पलट नहीं सकता ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए|
हटाएंमनोव्यथा के दोनों पहलुओं की सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
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