रातें काटी तारे गिन गिन
थके हारे नैन ताकते रहे बंद दरवाजे को
हलकी सी आहाट भी
ले जाती सारा ध्यान उस उस ओर
विरहन जोह रही राह तुम्हारी
कब तक उससे प्रतीक्षा करवाओगे
क्या ठान लिया है तुमने
उसे जी भर के तरसाओगे |
क्या किया ऐसा उसने
जो तुम समय पर ना आए
या जानना चाहते हो
कितना लगाव है उसको तुमसे
अब और कितनी प्रतीक्षा करवाओगे |
प्रतीक्षा का भी है अपना
अंदाज नया
पर भारी पडा है यह
इन्तजार उसे
तुम्हारे अलावा सब जानते हैं
जब देखोगे उसका हाल बुरा
बहुत पछताओगे |
अगर जाना ही था तो बता कर जाते
वह इस हद तक परेशान तो न होती
इंतज़ार तो होता अवश्य पर
बुरे ख्यालों की भरमार न होती
रोते रोते उसका यह हाल तो न होता
दिल में बुरे विचारों की
भरमार न होती |
प्रतीक्षा की आदत है उसको
क्या होता यदि बता कर जाते
इन्तजार की घड़ी कैसे कट जाती
वह जान ही नहीं पाती
बहुत उत्साह से दरवाजा खोल
मुस्कुरा कर तुम्हारा स्वागत
करती |
आशा
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जवाब देंहटाएंमें दिया गया है। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुप्रभात
हटाएंआभार सहित धन्यवाद सूचना हेतु |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंप्रतीक्षा करते समय वक्त बहुत धीरे गुजरता हे
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
धन्यवाद हिन्दी गुरू जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंप्रतीक्षा की बेेकली को बयान करती बहुत ही बेहतरीन रचना ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह बेहतरीन सृजन सखी।बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुजाता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंप्रतीक्षा का आनंद .... बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नासवा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
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