नीला समुन्दर नीला आसमान
धरा बहुरंगी इंद्र धनुष सामान
आशा उपजती उसे निहारने की
समस्त रंग जीवन में उतारने की |
यह जीवन भी है क्षणभंगुर
जाने कब साँसें थम जाएं
शरीर अग्नि की भेट चढ़े
पञ्च तत्व में विलीन हो जाए |
इस ज़रा से जीवन के हर पल का
पूर्ण आनंद लेना चाहती हूँ मैं
जिस रंग से हो अधिक लगाव
उसमें ही खोना चाहती हूँ मैं |
चंचल मन सोच नहीं पाता
किस रंग से है उसका गहरा नाता
हुआ है हाल बच्चों सा किसे दूं वरीयता
फिर भी जो जिद्द ठानी है उसकी
पूर्ती करूँ |
कभी जल या नभ कभी धरा पर विचरण
करूं
हर रंगबिरंगी वस्तु मुझे करती आकृष्ट
किसे लूं अपनाऊँ आत्मसात करूं
मैं कोई पल गवाना नहीं चाहती |
मुझे हर पल का हिसाब रखना है
जितना हो संभव उसका सदउपयोग करूं
है आकांक्षा प्रवल इस
जीवन को भरपूर जिऊं
क्या भरोसा कब साँस की लड़ी टूट जाए
मेरे सारे अरमान तो पूर्ण हो जाएं |
आशा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 18 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |मुझे आपका यह अंक बहुत अच्छा लगता है |
हटाएंबहुत खूबसूरत पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रकाश साह जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंअच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंहर रंग का अपना महत्त्व होता है तो क्यों ना समूचा इन्द्रधनुष ही जीवन में उतार लिया जाए और हर सुबह हर शाम को इन्द्रधनुषी बना लिया जाए ! ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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