15 जून, 2020

किसने कहा तुमसे





किसने कहा तुमसे
 प्यार नसीब में नहीं मेरे
 है वह बेशुमार तुम्हारे लिए
 पर तुम्हें उसकी कद्र ही नहीं है |
 खिची दीवार थी दोनों दिलों के बीच
अलगाव पैदा हुआ अनजाने कारण से
 इसे मिटाएं कैसे किस लिए
 जितने भी यत्न किये 
 सफलता से दूरी होती गई
 वह पास आकर भी दूर होती गई |
 अपनी भूल पर पश्च्याताप 
क्या ठीक से कर नहीं पाते
 या तुम ही नहीं समझ पाते
 अपने प्यार की ऊष्मा को
 नन्हें सितारा ही काफी हैं
 आसमान में चमकने के लिए
 कोई आवश्यकता नहीं है
 किसी बड़े से चंद्रमा की
 जिसे इतना महत्व् मिलता है
 उसके मुखमंडल पर भी दाग है
 दुनिया के  प्रपंचों से रहे हो दूर
 अब तक फिर हुआ बदलाव अचानक कैसा
 क्या प्रेम की डोर है इतनी कच्ची
 कि मेरी तुम्हें कोई कद्र ही नहीं है |
आशा 

4 टिप्‍पणियां:

  1. अनुराग विराग दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ! सिक्के का जो हिस्सा ऊपर होता है सामने वाले को उसी का आभास तीव्रता से होने लगता है ! ज़रुरत है सिक्के को धीरे से पलट देने की और यह हमारे ही वश में होता है ! सिक्का खुद अपने आपको पलट नहीं सकता ! सुन्दर रचना !

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  2. मनोव्यथा के दोनों पहलुओं की सुन्दर प्रस्तुति।

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