दिल और दिमाग
हैं तो सहोदर
एक साथ रहते है पर
संग्राम छिड़ा है दौनों में |
आए दिन की बहस
नियमों का उल्लंधन
एक ने चाहा दूसरे ने नकार दिया
हो गई है आम बात |
कभी दिल की जीत भारी
कभी मस्तिष्क की जीत हारी
हार जीत के खेल में
तालमेल नहीं है दौनों में |
नजदीकियां बढ़ते ही
नया विवाद जन्म ले लेता है
फिर से वही बहस
आए दिन की तकरार
उसमें उलझे रहते है दौनों |
संग्राम थमने का
नाम ही नहीं लेता
दौनो धरती के हुए दो ध्रुब
या धरा और आकाश |
|प्रेम प्यार से एक साथ
मिलजुल कर रह नहीं पाते
मिलते ही विरोध दर्शाते
अपनी दुनिया में जीना चाहते |
बहुत दुखी हूँ
किस तरह उनमें तालमेल बनाऊ
कैसे मध्यस्तता करूं
इस संग्राम का अंत करूं |
भूले सामंजस्य बना कर
रहने का मूल मन्त्र
खुद भी रहते परेशान
और दूसरे की भी चिंता नहीं |
हुए ऐसे आत्म केन्द्रित
दो चक्की के पाटों के बीच फंसी हूँ
मेरा क्या होगा कब थमें संग्राग
अब तो यह तक नहीं सोच पाती |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-06-2020) को "वक़्त बदलेगा" (चर्चा अंक-3728) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सूचना हेतु आभार सर |
हटाएंबढ़िया रचना ! मन मस्तिष्क के बीच यह रस्साकशी सदियों से होती चली आ रही है ! परिणाम हमेशा कभी पहले से सोचा नहीं जा सकता !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंयही तो द्विधा है आदमी के मन की.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रतिभा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंभावनाओं और विचार का द्वंद्व ही मनुष्य के विवेक को जन्म देता है। सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विश्व मोहन जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुंदर रचना आदरणीया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी इप्पनी के लिए |
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