छूने लगी है हर सांस
तुम्हारी धड़कनों को
जीने का है मकसद क्या ?
यह तक न सोच पाई |
की इतनी जल्द्बाजी
निर्णय लेने में
स्वप्नों में वह कल्पना भी
बुरी नहीं लगती थी |
उससे उबर भी न पाई थी
कि सच्चाई सामने आई
पर वास्तविकता से
सामना इतना सरल नहीं है
उस पर यदि विचार करो |
सच्चाई छुप नहीं पाती
जब झूट का सहारा लेती
तभी तो सिर उठाती है
उबाऊ जीवन के बोझ के
आगे आगे चलती है |
किसी और के मुखोटे को
अपने मुह पर लगा कर
उसे ही अपना मान कर
क्या बड़ी भूल कर बैठी है ?
आशा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 19 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार दिग्विजय जी |
Very good post...
जवाब देंहटाएंWelcome to my blog.....
सुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |
बहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंआभार सहित धन्यवाद टिप्पणी के लिए शास्त्री जी |
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद ओंकार जी |
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए हिंदी गुरु जी |
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सार्थक सृजन ! अच्छी अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार रवीन्द्र जी |
भावपूर्ण सुंदर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना आदरणीया
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