था इन्तजार हर वर्ष की तरह   
बरसात के इस   मौसम का 
धरती में दरारे पड़ी थी 
अपना दुःख  किसे बताती |
झुलसी  तपती गरमी से वह 
 तरस रही  थी वर्षा के लिए 
हरियाली की धानी चूनर से
 सजने के लिए |
बड़ी बड़ी बूंदे बरसीं 
 फिर मौसम ने ली अंगड़ाई 
बादल गरजे बिजली कड़की 
ली करवट  इस मौसम ने |
कहीं अती भी हो गई 
बाढ़ आने से जिन्दगी बेहाल हुई 
घर  खेत खलिहान  डूबे सारे 
 घर से बेघर हुए लोग |
 उजड़ती  गृहस्ती देख रहे
थे 
 सूनी सूनी आँखों  से 
तब भी कोई मदद नहीं मिल पाई
 जब  गुहार लगाई शासन से |
तिनका तिनका जोड़ा था
 कितना समय गुजारा था 
उस छोटे से घर  के निर्माण में
 जो अब जल मग्न हुआ  |
एक झटके में  बाढ़  का जल 
 सब कुछ बहा कर  ले गया  
किसी ने कल्पना तक न की थी 
 कि ऐसा समय भी आएगा |
बुने गए सारे स्वप्न ध्वस्त हुए
 बिखरे क्षण भर में ताश के पत्तों जैसे  
जो कुछ बचा समेट लिया
 चल दिए नए बसेरे की खोज में|
 जाने कब हालात में परिवर्तन
आएगा 
बरसात का कहर कब  थम पाएगा
क्या ईश्वर ने परिक्षा ली है धैर्य की ?
या प्रारब्ध में यही लिखा है 
कितना और संघर्ष है जिन्दगी में 
विचार मग्न  वे  सोच रहे हैं मन में  |
आशा
आशा

 
 
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना के लिए आभार सर |
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद ओंकार जी |
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 जुलाई 2020 को साझा की गयी है.......http://halchalwith5links.blogspot.com/ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
बेहद खूबसूरत रचना सखी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए सुजाता जी |
हटाएंवाह!आशा जी ,बहुत खूब👌
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद शुभा जी |
आदरणीया मैम,
जवाब देंहटाएंबाढ़ के पीड़ितों की वेदना का दिल को छू जाने वाला वर्णन।
प्रकृति के आगे मनुष्य बहुत ही बेबस हो जाता है पर यह भी है बाढ़ हमारे ही किये का परिणाम है।
हम वृक्ष काटते हैं, अच्छी नालियां नहीं बनाते, इस सब सेबरिष के पानी को सोखने वाला तो कोई नही होता और वर्षा का जल सतह पर जम कर बाढ़ ले आता है।
धन्यवाद अनंता जी टिप्पणी के लिए |
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