24 जुलाई, 2020

बचपन


बचपन के वे दिन
भुलाए नहीं भूलते
जब छोटी छोटी बातों को
 दिल से लगा लेते थे |
रूठने मनाने का सिलसिला
 चलता रहता था कुछ देर
 समय बहुत कम होता था
इस फिजूल के कार्य के लिए |
जल्दी से मन भी जाते थे
 कहना तुरंत मान लेते थे
तभी तो नाम रखा था
 सब ने “यस बॉस” हमारा  |
किसी बात पर बहस करना
आदत में शामिल नहीं था
सब का कहना बड़ी सरलता से  
बिना नानुकुर के स्वीकार्य होता था |
पर जैसे जैसे उम्र बढ़ी
अहम् का जन्म हुआ
क्यूँ ?क्या? किसलिए?का   
सवाल  हर बार मन में उठता है |
इतना सरल स्वभाव अब कहाँ
इसी लिए तो  हर बार
उलझन से बच निकलने के लिए
 बचपन के वे  दिन याद आते हैं |
 कभी भूल नहीं पाते
 बचपन का वह भोलापन
बड़े प्यार से सब के साथ
 मिलजुल कर रहने की साध |
 |
आशा

12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 24 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२५-०७-२०२०) को 'सारे प्रश्न छलमय' (चर्चा अंक-३७७३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. सुप्रभात
      टिप्पणी हेतु आभार सहित धन्यवाद सर |

      हटाएं
    2. सुप्रभात
      टिप्पणी हेतु धन्यवाद सर |

      हटाएं
  4. वाह ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! बचपन जी उठा हर पंक्ति में !

    जवाब देंहटाएं
  5. बचपन जीवंत हो उठा यह रचना पढ़ पर

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: