बचपन के वे दिन 
भुलाए नहीं भूलते 
जब छोटी छोटी बातों को
 दिल से लगा लेते थे |
रूठने मनाने का सिलसिला
 चलता
रहता था कुछ देर 
 समय बहुत कम होता था 
इस फिजूल के कार्य के लिए |
जल्दी से मन भी जाते थे
 कहना
तुरंत मान लेते थे
तभी तो नाम रखा था
 सब
ने “यस बॉस” हमारा  | 
किसी बात पर बहस करना 
आदत में शामिल नहीं था 
सब का कहना बड़ी सरलता से  
बिना नानुकुर के स्वीकार्य होता था | 
पर जैसे जैसे उम्र बढ़ी 
अहम् का जन्म हुआ 
क्यूँ ?क्या? किसलिए?का   
सवाल  हर बार मन में उठता है |
इतना सरल स्वभाव अब कहाँ 
इसी लिए तो  हर बार 
उलझन से बच निकलने के लिए 
 बचपन
के वे  दिन याद आते हैं |
 कभी भूल नहीं पाते 
 बचपन
का वह भोलापन 
बड़े प्यार से सब के साथ 
 मिलजुल कर रहने की साध |
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आशा 

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 24 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
बचपन का अच्छा चित्रण।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद सर |
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२५-०७-२०२०) को 'सारे प्रश्न छलमय' (चर्चा अंक-३७७३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
सुप्रभात
हटाएंसूचना हेतु आभार अनीता जी |
बचपन के दिन मजेदार दिन
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी हेतु आभार सहित धन्यवाद सर |
सुप्रभात
हटाएंटिप्पणी हेतु धन्यवाद सर |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! बचपन जी उठा हर पंक्ति में !
जवाब देंहटाएंबचपन जीवंत हो उठा यह रचना पढ़ पर
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