मेरे दिल का सुकून
कहीं खो गया है |
उससे तुम्हारे मन में
अपार
शान्ति का एहसास जगा है
कभी दिल खोल कर हँसे नहीं
सदा अलग थलग रहे |
मैंने घुटन भरे जीवन से
कभी
सांझा नहीं किया है
सदा बुझे बुझे रहने में
है
क्या मजा ?
जिन्दगी जीने का अंदाज
कुछ
तो नया हो
यह चाह है मन की
कोई बाध्यता नहीं है |
सब हैं अपनी मर्जी के मालिक
तुम्हारी सोच मेरी सोच से है भिन्न
कभी मेल नहीं खाती
दौनों हैं विपरीत दिशाओं के यात्री |
बहस से क्या लाभ
अपने ढंग से जीवन जियो
पर फिर भी रहो प्रसन्न
खुश रहो और खुशियाँ बांटो
|
असंतुष्टि
भरे जीवन से
कुछ
भी हांसिल नहीं होता
चार दिनों का है जीवन
कब समाप्त हो जाए मालूम नहीं |
समय के पीछे क्यूँ भागें
हर
पल को भर पूर जियें
स्वर्ग से सुनहरे जीवन का
क्यूँ न उपभोग करें |
आशा
आशा
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआप अन्य ब्लॉगों पर भी टिप्पणी किया करो।
तभी तो आपके ब्लॉग पर भी लोग कमेंट करने आयेंगे।
सुप्रभात
हटाएंआपका सजेशन है तो बिलकुल सही पर मेरी भी बहुत बड़ी समस्या है |मेरे एक हाथ और पैर में लकवे का अटक हो गया है |अधिक देर बैठ नहीं पाती |
टिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |
बहुत बढ़िया भाव
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद स्मिता |
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 26 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार यशोदा जी |
हटाएंसच है ! चार दिन का यह जीवन हँस बोल कर ही बिताना चाहिए ! बिसूरने से कुछ हासिल नहीं होता !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुंदर संदेश।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुजाता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर
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