25 जुलाई, 2020

दिल का सुकून









 


मेरे मन में खलिश पैदा करके 
तुम्हें क्या मिलता है  
मेरे दिल का सुकून
कहीं खो गया है |
उससे तुम्हारे मन में
 अपार शान्ति का एहसास जगा है
कभी दिल खोल कर हँसे नहीं
सदा अलग थलग रहे |
मैंने  घुटन भरे जीवन से
 कभी सांझा नहीं किया है
सदा बुझे बुझे रहने में
 है क्या मजा ?
जिन्दगी जीने का अंदाज
 कुछ तो नया हो
यह चाह है मन की
कोई बाध्यता नहीं है |
 सब हैं अपनी  मर्जी के मालिक
तुम्हारी सोच मेरी सोच से है भिन्न
कभी मेल नहीं खाती
दौनों हैं विपरीत दिशाओं के यात्री |
बहस से क्या लाभ
अपने ढंग से जीवन जियो
 पर फिर भी रहो प्रसन्न
खुश रहो और  खुशियाँ बांटो  |
असंतुष्टि  भरे जीवन से
 कुछ भी हांसिल नहीं होता
चार दिनों का है  जीवन  
कब समाप्त हो जाए मालूम नहीं | 
समय के पीछे क्यूँ भागें
हर  पल को भर पूर जियें
स्वर्ग से सुनहरे  जीवन का 
                                      क्यूँ न उपभोग करें |
                                              आशा 

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर।
    आप अन्य ब्लॉगों पर भी टिप्पणी किया करो।
    तभी तो आपके ब्लॉग पर भी लोग कमेंट करने आयेंगे।

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      आपका सजेशन है तो बिलकुल सही पर मेरी भी बहुत बड़ी समस्या है |मेरे एक हाथ और पैर में लकवे का अटक हो गया है |अधिक देर बैठ नहीं पाती |
      टिप्पणी के लिए धन्यवाद सर |

      हटाएं
  2. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद स्मिता |

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 26 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. सच है ! चार दिन का यह जीवन हँस बोल कर ही बिताना चाहिए ! बिसूरने से कुछ हासिल नहीं होता !

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