वह अकेली ही नहीं घिरी है
विविध प्रकार के प्रश्नों से
उत्तर तक नहीं सूझते
क्या क्या जबाब दे |
प्रश्नों का अम्बार लगा है
हल करने के लिए
कई प्रकार के प्रश्न है
आज के परिवेश में |
क्यूँ क्या कैसे कब कहाँ
किसलिए से शुरू हुआ हैं
सही हल उनका
कुछ भी नहीं निकलता |
मिलते जुलते उत्तर
लिखे होते चुनाव के लिए
यहाँ वहां भटकना पड़ता
उन्हें हल करने के लिए|
किसी प्रश्न की तो है विशेषता यही
होता प्रश्न एक उत्तर अनेक
सही विकल्प खोजना होता
उत्तर पुस्तिका में लिखना होता |
किसे सही माने किसे करे निरस्त
जब सोच नहीं पाती
तीर में तुक्का लगाती
कभी सही होता उत्तर कभी गलत |
यदि प्रश्न गलत हल किया हो
और नंबर कट जाते हों
तब बहुत पछतावा
होता है
क्यूँ गलत उत्तर पर निशान लगाए |
इसी तरह जिन्दगी की गाड़ी
फंसी है छोटी बड़ी समस्याओं में
जिहें हल करना होता मुश्किल
प्रश्नपत्र की तरह |
कोई भी सहायक नहीं होता
उसे आगे खीचने में
खुद ही हल खोजने होते हैं
जिन्दगी
के प्रश्नों के |
उत्तर सही चुने यदि
जिन्दगी सरल चलती जाएगी
वरना समस्याओं की
संख्या बढ़ती जाएगी |
आशा
आज के हालात में हर इंसान सवालों से घिरा हुआ है और उनके उत्तर तलाश रहा है ! चिंतनपरक सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |