हो तुम खुशबू का खजाना
दिया जो उपहार में
इस प्रकृति नटी ने तुम्हें
सवारने सहेजने के लिए |
दी अपूर्व सुन्दरता हर एक पंखुड़ी में
श्वेत रंग दिया भरपूर
नारंगी रंग की डंडी ने
अद्भुद
निखार लाया है|
जब धरती पर
पुष्प झर झर झरे
मंद मंद हवा बहे
एक अनूठी सैज सजे
पारिजात वृक्ष के तले |
जागा अदभुद एहसास
उस पर कदम पड़ते ही
मन को सुकून आया है
देखी तुम्हारी बिछी श्वेत चादर
कितने जतन किये थे मैंने
तुम्हारे रूप को सजाने में |
हो तुम श्वेत सुन्दर अनुपम कृति
ईश्वर प्रदत्त उपहार में हमें
रोज चढ़ाए जाते
पुष्प प्रभु के चरणों में
महकता मंदिर का आँगन
अनुपम सुगंध से है जो है प्रिय
हमें और हमारे आराध्य को
आशा
आशा
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद स्मिता टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 21 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंसूचना के लिए आभार |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी |
हटाएंसौरभ और सौन्दर्य का अद्भुत योग होता है हरसिंगार के इन फूलों में ! अत्यंत नयनाभिराम ये सुकोमल पुष्प वास्तव में प्रकृति का अनुपम उपहार होते हैं !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुरभि और सौन्दर्य का संगम!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए प्रतिभा जी |
सूचना हेतु आभार सर |
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