25 अगस्त, 2020

उन्मुक्त उड़ान






देख कर उन्मुक्त उड़ान भरती चिड़िया की
 हुआ अनोखा  एहसास उसे   
 पंख फैला कर उड़ने की कला  खुले आसमान में
 जागी उन्मुक्त जीवन जीने की चाह अंतस में |
हुआ मोह भंग तोड़ दिए सारे बंधन आसपास के
 हाथों के स्वर्ण कंगन उसे  लगे अब  हथकड़ियों से
पैरों की पायलें लगने  लगी लोहे की  बेड़ियां
यूं तो थी  वह रानी  स्वयं ही  अपने धर की
 पर  रैन बसेरा लगा अब  स्वर्ण पिंजरे सा |
कई बार सोचा   है  क्या कमी यहाँ
पर  न पहुंच पाई किसी निष्कर्ष पर  
ज्यों ज्यों गहराई में डूबी खोई विचारों में 
उर में उठी हूँक बढी बेचैनी |
 फिर याद आई छबि उन्मुक्त हो पंख फैला कर
 व्योम में उड़ती  उस चिड़िया की
नहीं  कोई विघ्न बाधा ना ही कोई बंधन
 हुई ईर्ष्या उसके जीवन से |
कहीं  मन के किसी कौने में  सोच जागा
क्या उस जैसा  उन्मुक्त  जीवन जीने का
 अवसर  उसे भी कभी मिलेगा
जी पाएगी  उन्मुक्त बिंदास जीवन |
पहले  सच्चाई से थी  दूर बहुत  
चिड़िया के उन्मुक्त जीवन जीने के पीछे का संघर्ष  
कितनी कठिनाइयों से गुजरना  होता था उसे
                                                     अनगिनत  समस्याओं से खुद को बचा कर 
 आगे का मार्ग प्रशस्त किया था  उसने|
यही है वह राज जो
उड़ती चिड़िया से जो  जाना है उसने
दुनिया का कोई बंधन  अब बाँध नहीं सकता  
                                 रहना है यहीं उन्मुक्त उड़ान भरना है  |                              है |
आशा  

    

13 टिप्‍पणियां:

  1. खुला आसमान खुली हवा दिल खोलकर जीना सिखाते हैं
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. पंछियों का जीवन भी हम जैसे लकीर के फ़कीर इंसानों के लिए बहुत ही सार्थक एवं प्रेरक हो सकता है ! बहुत खूबसूरत रचना !

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन अभिव्यक्ति । सराहनीय प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  5. टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद स्वराज्य जी |

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 31 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह बेहतरीन सृजन सखी बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं

Your reply here: