घिसटती जाएगी
फिर से गाड़ी पटरी पर
लौट न पाएगी |
हुआ है जीवन एक ऐसा बोझा
जिसे सर पर भी उठा नहीं पाते
किसी मशीन का ही
सहारा लेना पड़ता है
जब उससे बच निकलना चाहते |
फिर भी सर पर से
बोझ कम नहीं होता
क्या करें किसका सहारा लें
या खुद ही इतनी क्षमता उत्पन्न करें
पर भय बना रहता है
कहीं देर न हो जाए
हम जहां थे वहीं खो न जाएं |
आत्मविश्वास सभी समस्या का समाधान है
जवाब देंहटाएंजिंदगी जीने का नाम है, जीना है तो इसकी समस्यायों का सामना हिम्मत से करना है |
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सूचना हेतु आभार दिलबाग जी |
हटाएंयही सही रहेगा ! खुद में ही इतनी क्षमता उत्पन्न करनी होगी कि किसी दूसरे का सहारा लेने की नौबत ही न आये ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
वाह!सुंदर सृजन ।
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