ना चाह ना किसी की आस की
जब देखा आसपास बड़ी निराशा हुई
मन पर गिरी गाज जब भी
पंख फैला उड़ना चाहा |
चेहरा बुझा बुझा सा हुआ
अरमानों का निकला जनाजा
आशा निराशा में बदली
किसी खोज का अंत न हुआ |
थोड़े समय के लिए ही सही
पर मन की बेचैनी कम न हुई
खूब खाया घूमें घामें पर
प्रभाव कुछ न ख़ास हुआ |
हर बार मन ने नियंत्रण खोया
फिर भी रही तसल्ली
बहुत खोया पर कुछ तो पाया
यहीं मुझे भगवान् नजर आया |
यूँ तो कभी दिखाई न दिया
पर प्रभू का समदर्शी नाम
यूँ ही नहीं हुआ
बहुत सार्थक नाम दिया भक्तों ने
दिल से उसे अपनाया |
आशा
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेख आदरणीय |
जवाब देंहटाएंMuhavare aur Lokoktiyan Hindi Vyakaran Notes In Hindi
Thanks for the comment
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 16 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना के लिएआभार सहित धन्यवाद यशोदा जी |
हटाएंप्रभावशाली रचना।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-१०-२०२०) को 'नागफनी के फूल' (चर्चा अंक-३८५७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
Thanks for the post information
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ! सार्थक सोच ! संतोषी सदा सुखी !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंभावों से भरी सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंऐसी ही भावपूर्ण रचनाओं के लिए आप मेरे ब्लॉग पर भी आमंत्रित हैं
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसतीश जी टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद |
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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