हर हाल में मस्तिष्क सक्रीय रहता है
सुख़ से हो या दुखी कभी निष्क्रीय नहीं होता
कोई बात उसे चिंतित नहीं करती
हर समय व्यस्त रहता है अपने कार्य में |
जब निष्क्रीय होने लगता है
कहा जाता है वह मृत हो गया है
अब कभी चेतना नहीं जागेगी
जीवन भर ऐसे ही जीना होगा |
पर यदि चमत्कार हो जाए
वह फिर सचेत हो कर कुछ कार्य करे
ईश्वर की मेहरवानी हुई है उस पर
यही तो कहा जाता है |
यह सब भूल जाते हैं है तो वह एक मशीन ही
कब तक सक्रीय रहेगी कभी तो साथ छोड़ेगी
पर सच्चाई से दूर न हो कर स्वीकारना ही होगा
है यथार्थ यही जिससे मुख मोड़ रहे हैं |
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 07 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार सर |
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08.10.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार सर |
यथार्थ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद स्मिता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंजब तक मस्तिष्क जीवित होता है तब ही तक मनुष्य भी जीवित होता है ! सुन्दर सार्थक रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 8 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंलिंक की सूचना देने के लिए आभार सर |
इसी सच को भूलना ही तो माया है । सत्य कहा । आभार ।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद अमृता जी |
सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |