कहने को कोई बात नहीं है
पर है भण्डार विचारों का
जिन्हें एक घट में किया संचित
कब गगरी छलक जाए
यह भी कहा नहीं जा सकता
पर कभी बेचैन मन इतना हो जाता है
कह भी नहीं पाता ठोकर लगते ही
छलकने लगता गिरने को होता
ऐसी नाजुक स्थिति में बहुत शर्म आती है
कहानी अनकही जब उजागर हो जाती है |
पर कब तक बातें मुंह तक आकर रुक जातीं
मन ही मन बबाल मचाती रहतीं
चलो अच्छा हुआ मन का गुबार निकल गया
फिर से मुस्कान आई है चहरे पर |
किसी ने सच कहा है स्पष्ट बोलो
मन से अनावश्यक बातों को निकाल फेंको
मन दर्पण सा हो साफ
तभी जीवन होगा सहज
भविष्य भी सुखमय बीतेगा |
आशा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 02 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंयशोदा जी मेरी पोस्ट की सूचना हेतु आभार
हटाएंसुन्दर सहज प्रवाह की रचना - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शांतनु जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंमन दर्पण सा हो साफ
जवाब देंहटाएंतभी जीवन होगा सहज
बहुत सुंदर और अनमोल विचार आशा जी.
प्रणाम और शुभकामनाएं🙏🙏
धन्यवाद टिप्पणी के लिए रेणु जी |
हटाएंमन ही मन बबाल मचाती रहतीं
जवाब देंहटाएंचलो अच्छा हुआ मन का गुबार निकल गया
फिर से मुस्कान आई है चहरे पर |
किसी ने सच कहा है स्पष्ट बोलो
मन से अनावश्यक बातों को निकाल फेंको
अनमोल भाव लिए उत्कृष्ट कविता
सादर
धन्यवाद टिप्पणी के लिए |टिप्पणी अच्छी लगी |
हटाएंवाह ! बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ! बढिया रचना !
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 4 नवंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!