सागर विशाल सी गहराई तुम में
उसे पार न कर पाऊँ
कैसे उसमें डूबूं बाहर निकल न पाऊँ
गहराई की थाह न पाऊँ |
की कोशिश कितनी बार
तुम्हें समझने समझाने की
पर असफलता ही हाथ लगी
मन की हार हुई हर बार |
पर कोशिश ना छोड़ पाई
कमर कसी खुद को सक्षम बनाया
फिर से उसी समस्या में उलझी
सफलता पाने के लिए |
मुझे हारना अच्छा नहीं लगता
शायद मेरे शब्दकोश में
हार शब्द है ही नहीं तभी तो
अनवरत लगी रहती हूँ खुद को झुकाने में |
सफलता पाने के लिए क्या करूँ
जब तक सफलता ना पालूँ
मुझे चैन नहीं मिल पाएगा
जो दूरी तुमने बनाई है मुझे इसे मिटाना है |
तभी तो निदान हो पाएगा उलझन का
किसी एक को तो झुकना ही है
मै झुकी तो तुम्हारा अहम्
बना रहेगा वही तो तुम चाहते हो |
यदि यही समस्या का हल है तो यही सही
झुकने से विनम्रता ही आएगी
मुझ में कोई कमी नहीं होगी
मैं जहां हूँ वहीं रहूँगी |
आशा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-11-2020) को "चाँद ! तुम सो रहे हो ? " (चर्चा अंक- 3875) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सुहागिनों के पर्व करवाचौथ की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुप्रभात
हटाएंमेरी पोस्ट की सूचना के लिए आभार सर|
यदि यही समस्या का हल है तो यही सही
जवाब देंहटाएंझुकने से विनम्रता ही आएगी
मुझ में कोई कमी नहीं होगी
मैं जहां हूँ वहीं रहूँगी |
सुंदर सृजन
सुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद सधू जी |
सटीक समाधान समस्या का ! चिंतनपरक सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
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