३-एक कहानी सूरज नारायण की
एक परिवार में रहते तो केवल तीन सदस्य थे ,पर महिलाओं में आपस में बिल्कुल
नहीं बनती थी |सारे दिनआपस में झगडती रहती थी । घर में सारे दिन की कलह से
सूरज नारायण बहुत तंग आ चुका था |न तो घर
में कोईबरकत रह गई थी और न ही कोई रौनक |
यदि कोई अतिथि आता ,सास बहू के व्यबहार से वह भी दुखी होकर जाता | धीरे धीरे घर के वातावरण
से उकता कर वह घर से बाहर अधिक रहने लगा |जब इतने से भी बात नहीं बनी ,एक दिन शान्ति की तलाश
में सूरज ने घर छोड़ दिया |
इधर पहले तो कोई बात न हुई पर जब वह नहीं आया तो सास बहू ने उसकी तलाश शुरू की |सास भानुमती
एक जानकर के पास गयी व अपने पुत्र की बापसी का उपाय पूंछा | बहू ने भी अपने पति को पाने के उपाय
अप्नी सहेलियों से पूछे|
सब लोगों से चर्चा करने पर उन्होंने पाया की यदि घर का अशान्त वातावरण,गंदगी व आपसी तालमेल का
अभाव रहे तो कोई भी वहां नहीं रहना चाहता , चाहे पति ही क्यूँ न हो |
दूसरे ही दिन सास भानुमती ने अपनी बहू सुमेधा को अपने पास बुलाया |लोगों द्वारा दिए गये सुझावों की
जानकारी उसे दी |पति के घर छोड़ देने से परेशान सुमेधा ने भी हथियार दल दिए व सास का कहना मानने लगी |
अब घर में सभी कार्य सुचारू रूप से होने लगे घर की साफ सफाई देखने योग्य थी |यदि कोई आता तो उसे
ससम्मान बैठाया जाता |आदर से जलपान कराया जाता तथा यथोचित भेट ,उपहार आदि देकर विदा किया जाता | धीरे धीरे सभी बाते सूरज तक पहुचने लगी |उसने माँ व सुमेधा की परीक्षा लेने के लिए एक कोढ़ी का वेश
धरण किया और अपने घर जाकर दरवाजा खटखटाया | जैसे ही दरवाजा खुला सुमेधा को अपने सामने पाया |
सुमेधा उसे न पहचान सकी |फिरभी वह व भानुमती उसकी सेवा करने लगी|आदर से एक पाट पर बैठकर
उसके पैर धुलाए , भोजन करवाया व पान दिया | भोजन के बाद सूरज ने सोना चाहा और सूरज नारायण के बिस्तर पर सोने की इच्छा जाहिर की |सास ने खा बुजुर्ग है सोजानेदो |सुमेधा ने उसे सोजाने दिया |
पर सूरज ने एकाएक उसका हाथ पकड़ा व कहा मई सूरज नारायण हूँ |इस पर सुमेधा ने कहा "मेरेपति तो इस करवे की टोटी में से निकल सकते है ,यदि आप निकल जाओ तभी मैं आपको अपना पति मानू"
सूरज ने बड़ी सरलता से करवे की टोंटी से निकल कर दिखा दिया व अपने असली रूप मे आगये |
अब घर का माहोल बदल गया व घर फिरसे खुश हाल होगया |
में कोईबरकत रह गई थी और न ही कोई रौनक |
यदि कोई अतिथि आता ,सास बहू के व्यबहार से वह भी दुखी होकर जाता | धीरे धीरे घर के वातावरण
से उकता कर वह घर से बाहर अधिक रहने लगा |जब इतने से भी बात नहीं बनी ,एक दिन शान्ति की तलाश
में सूरज ने घर छोड़ दिया |
इधर पहले तो कोई बात न हुई पर जब वह नहीं आया तो सास बहू ने उसकी तलाश शुरू की |सास भानुमती
एक जानकर के पास गयी व अपने पुत्र की बापसी का उपाय पूंछा | बहू ने भी अपने पति को पाने के उपाय
अप्नी सहेलियों से पूछे|
सब लोगों से चर्चा करने पर उन्होंने पाया की यदि घर का अशान्त वातावरण,गंदगी व आपसी तालमेल का
अभाव रहे तो कोई भी वहां नहीं रहना चाहता , चाहे पति ही क्यूँ न हो |
दूसरे ही दिन सास भानुमती ने अपनी बहू सुमेधा को अपने पास बुलाया |लोगों द्वारा दिए गये सुझावों की
जानकारी उसे दी |पति के घर छोड़ देने से परेशान सुमेधा ने भी हथियार दल दिए व सास का कहना मानने लगी |
अब घर में सभी कार्य सुचारू रूप से होने लगे घर की साफ सफाई देखने योग्य थी |यदि कोई आता तो उसे
ससम्मान बैठाया जाता |आदर से जलपान कराया जाता तथा यथोचित भेट ,उपहार आदि देकर विदा किया जाता | धीरे धीरे सभी बाते सूरज तक पहुचने लगी |उसने माँ व सुमेधा की परीक्षा लेने के लिए एक कोढ़ी का वेश
धरण किया और अपने घर जाकर दरवाजा खटखटाया | जैसे ही दरवाजा खुला सुमेधा को अपने सामने पाया |
सुमेधा उसे न पहचान सकी |फिरभी वह व भानुमती उसकी सेवा करने लगी|आदर से एक पाट पर बैठकर
उसके पैर धुलाए , भोजन करवाया व पान दिया | भोजन के बाद सूरज ने सोना चाहा और सूरज नारायण के बिस्तर पर सोने की इच्छा जाहिर की |सास ने खा बुजुर्ग है सोजानेदो |सुमेधा ने उसे सोजाने दिया |
पर सूरज ने एकाएक उसका हाथ पकड़ा व कहा मई सूरज नारायण हूँ |इस पर सुमेधा ने कहा "मेरेपति तो इस करवे की टोटी में से निकल सकते है ,यदि आप निकल जाओ तभी मैं आपको अपना पति मानू"
सूरज ने बड़ी सरलता से करवे की टोंटी से निकल कर दिखा दिया व अपने असली रूप मे आगये |
अब घर का माहोल बदल गया व घर फिरसे खुश हाल होगया |
आशा
Saturday, April 18, 2020
Sunday, April 12, 2020
एकता
एकता –
खिंच रही थी घर में दीवार |पर
बटवारा होता कैसे संभव |अचानक बटवारा रूकने के पीछे छिपे कारण का खुलासा नहीं हो पाया था तब |एक दिन सब आँगन में बैठ बातें कर रहे थे |
उस दिन सच्चाई सामने आई |घर में दो सदस्य थे ऐसे जो पूर्ण रूप से
आश्रित थे | बिलकुल असमर्थ
कोई काम न कर पाते थे |बुढापे से जूझ रहे थे |प्रश्न था कौन उन्हे
सम्हाले ?तब एक ने सलाह दी थी क्यूँ न इन्हें वृद्ध आश्रम में पहुचा दें |मिल कर आ
जाया करेंगे |पर छोटे का मन नहीं माना |बात वहीं समाप्त हो गई थी तब |
तब से रोज लड़ाई होती थी उन की देखरेख के लिए |जब अति हो गई फिर से बटवारे की बात उठी
|दरार दिलों में और बढ़ी |ललक अलग रहने की
जागी| फिर बात वहीं आकर अटकी उनकी देखरेख कौन करे ?
अचानक कोरोना का कहर की दहशत से न उबार पाए आसपास के एकल परिवार | पर उनके
परिवार में एकता रंग लाई एक दूसरे की मदद से
कठिन समय से उभरने की शक्ति काम आई |
Sunday, March 29, 2020
सात भाइयों की एक बहिन
सात भाइयों की एक ही बहिन थी |सातों उससे बहुत प्यार करते थे |
वय प्राप्ति के बाद उसका बिवाह उसी
शहर में एक संपन्न परिवार में हुआ |ससुराल में कोई कमीं न थी |पर भाई बहुत चिंता करते थे उसकी|
जब पहली करवा चतुर्थी आई बहन ने निर्जला व्रत रखा |
उसे व्रत चाँद देख कर ही खोलना था |भाई बहुत परेशान थे कि बिना जल के बहिन
उपास कैसे रखेगी |उन्हों ने आपस में विचार विमर्श किया |कोई तरकीब निकाली जाए कि बहिन का
व्रत जल्दी समाप्त हो जाए |
आँगन में एक अखैवर का वृक्ष लगा
था |भाइयों में से एक
शाम होते ही पेड़ की सबसे ऊंची डाल पर एक छलनी ले कर चढ़ गया |उसमें एक जलता
हुआ दिया रख लिया |
सबसे छोटा भाई बहिन के पास जा कर बोला “चाँद निकल आया है”चलो
बहिन व्रत खोलो | बहिन बहुत सीधी थी |उसने पानी पी कर
व्रत तोड़ा |इतने में उसकी ससुराल से समाचार आया कि न जाने उसके पति को क्या
हो गया |वह खबर सुनते ही अपनी ससुराल चल दी |वहाँ
सब हिचकियाँ ले कर रो रहे थे
|आसपास के लोग ले जाने की तैयारी करने लगे |उससे रहा नहीं गया और पति की अर्थी को
ठेले पर रख घर से निकली |
सबसे पहले घूरे के पास गई उससे कहा “घूरे मामा मैं तुम्हारे पास
आऊँ”|घूरे ने कहा “बेटी तेरे दिन भारी हैं मेरे पास न आ” उसे बुरा लगा और
कहा “जाओ१२ वर्ष बाद भी तुम जैसे हो वैसे ही रहोगे”| थोड़ा और आगे चली|राह में एक
गाय मिली उससे कहा “क्या मैं तेरे पास आऊँ”|गाय ने भी उसे अपने पास ठहराने से मना
कर दिया और कहा “बेटी तेरे दिन भारी है मेरे पास कैसे रहेगी”|उसे बहुत दुःख हुआ और
श्राप दिया जिस मुंह से गाय ने मना किया था उसी मुंह से गाय विष्ठा पान करेगी |
हारी थकी वह एक गूलर के पास पहुंची “गूलर भैया मैं तुम्हारे पास
रुक जाऊं”|पर गूलर से भी निराशा ही हाथ लगी |उसने गूलर को श्राप दिया की
तुम्हारा फल कोई नहीं खाएगा उसमें कीड़े पड़ जाएंगे |
आगे जा कर वह एक बरगद के नीचे
बैठने लगी और पूंछा “क्या मैं आपके आश्रय
में रह सकती हूँ”|बरगद ने जबाब दिया “जहां इतने लोगों ने आश्रय लिया है तुम्हारे
लिए क्या कमी है”|वह पेड़ के नीचे छाँव देख कर बैठ गई और प्रार्थना करने लगी मेरी क्या भूल थी जो मुझे यह कष्ट दिया है|एक ने
सलाह दी तुमसे कोई भूल हुई है
देवी की प्रार्थना करो और अपने सुहाग की भिक्षा मांगो |पूरा साल होने को
आया जब बारहवी चतुर्थी आई उसने माँ के चरण पकड़ लिए और
कहा पहले मेरा सुहाग लौटाओ तभी
तुम्हारे पैर छोडूंगी |देवी का मन पसीजा और अपनी छोटी उंगली सेउसके पती को छुआ |उसका पती राम राम कह कर उठ कर बैठ गया |वे
दौनों खुशी खुशी घर आए और अपने परिवार के साथ रहने लगे |
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंकरवाचौथ की बधाई हो।
Thanks for the comment
हटाएंबहुत सुन्दर कथा !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएं