मौसम बड़ा बेईमान हो गया
अपनी मनमानी करने लगा है
वर्षा का क्या कोई ईमान नहीं
चाहे अनचाहे दस्तक देती है |
हरी भरी फसल जमीन पर पसरी है
सारी मह++नत विफल हुई है
सुरमई बादलों को
जब देखा आसमान में |
गरजते बरसते नहला जाते हैं
बेमौसम उत्पात मचा जाते है
मौसम का मिजाज बदल रहा है
वे सर्दी और बढ़ा जाते हैं |
आशा
वाह बहुत बढ़िया समयानुकूल
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१२-१२-२०२०) को 'मौन के अँधेरे कोने' (चर्चा अंक- ३९१३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार अनीता जी |
बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी हेतु आभार सहित धन्यवाद वर्षा जी |
मौसम तो बदनाम है ही ,बेचारा !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद प्रतिभा दीदी टिप्पणी के लिए |
बहुत सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंहर मौसम की अपनी अहमियत होती है ! इस मौसम की फसल को भी वर्षा की ज़रुरत तो होती ही है ! अच्छी मौसमी रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
सुंदर रचना 👌।आपकी तरह
जवाब देंहटाएंसुप्रभात टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद अविनाश महरोत्रा जी |
जवाब देंहटाएंसराहनीय रचना ।
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