आँखों पर चश्मा हाथ में लाठी
कमर झुकी है आधी आधी
हूँ हैरान सोच नहीं पाती
इतना परिवर्तन हुआ कब कैसे |
है शायद यही नियति जीवन की
इससे भाग नहीं सकते
कितनी भी कोशिश कर लें
इससे मुक्ति पा नहीं सकते |
बने सवरे घंटों पार्लर में बैठे
जाने कब यौवन बीत गया
पर मैं रोक नहीं पाई
आने से वृद्धावस्था के इस पड़ाव को |
अब तो इन्तजार है अगले पड़ाव का
जहां कोई कभी नहीं जगाएगा
किसी बात पर बहस न होगी
मृत्यु उपरान्त की शान्ति रहेगी |
आशा
सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद ओंकार जी |
अब तो इन्तजार है अगले पड़ाव का
जवाब देंहटाएंजहां कोई कभी नहीं जगाएगा
किसी बात पर बहस न होगी
मृत्यु उपरान्त की शान्ति रहेगी | मर्मस्पर्शी रचना।
सुप्रभात
हटाएंटिप्पणी बहुत सुन्दर लगी |इस हेतु आभार सहित धन्यवाद शांतनु जी |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार दिग्विजय जी |
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसूचना के लिए आभार मीना जी |
बिलकल सच ।सराहनीय रचना ।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंआँखों पर चश्मा हाथ में लाठी
जवाब देंहटाएंकमर झुकी है आधी आधी
हूँ हैरान सोच नहीं पाती
इतना परिवर्तन हुआ कब कैसे |
है शायद यही नियति जीवन की
इससे भाग नहीं सकते
कितनी भी कोशिश कर लें
इससे मुक्ति पा नहीं सकते |
मन को छू लेने वाली यथार्थपरक सशक्त रचना...
साधुवाद 🌹🙏🌹
Thanks for the comment
जवाब देंहटाएंजीवन मृत्यु के मर्म को दर्शाती रचना..।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंअब तो इन्तजार है अगले पड़ाव का
जवाब देंहटाएंजहां कोई कभी नहीं जगाएगा
किसी बात पर बहस न होगी
मृत्यु उपरान्त की शान्ति रहेगी |
अत्यंत हृदयग्राही पंक्तियां 🌹🙏🌹
Thanks for the comment
जवाब देंहटाएंजीवन यही है... पता ही नहीं चलता कि कब बीत गया..हाथों से रेत की मानिंद फिसलता चला जाता है....
जवाब देंहटाएंमृत्यु उपरांत की शान्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सटीक।
सत्य के दर्शन कराती सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंअपनी सी कहानी लगी आपकी यह रचना। पर मृत्यु से पहले प्रभु से एकाकार होने की इच्छा है अभी मन में, जीते-जी तीनों गुणों से ऊपर ।
जवाब देंहटाएंईश्वर जो करता है अच्छे के लिए करता हैआगे भी अच्छा ही होगा
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