17 दिसंबर, 2020

क्यूँ हुए विचलित

 


 

क्यूँ हुए  विचलित 

 किसी ने तुम्हारा दिल तो नहीं दुखाया  

या मन  की गहराई में

कोई  बुरा ख्याल आया  |

 बैठे हो गुमसुम बेजान प्रस्तर प्रतिमा से  

 मन में अशांति की दुकान लिए

 यह क्या बात हुई दो बोल मीठे बोलो

 मन की ग्रंथि खोलो |

 कुछ तो हल निकलेगा   

जब  मुस्कान अधरों पर आएगी   

समस्या का निदान भी

 निकल ही आएगा |

मन  क्लेश से   न भरेगा  

दो शब्द मीठे मिश्री से उसके

जब तुम्हारे  कानों में पड़ेगे

वही  मिठास मन  में घोलेंगे |

 तुम्हारी आत्मा तृप्त हो जाएगी

स्वयम को तुम सहज अनुभव  करोगे

तुम्हारे मन का मलाल भी

तिरोहित हो जाएगा |

इस बिचलन से मुक्त हो

जीवन प्रसन्नता से जी सकोगे

 सामाजिक प्राणी बनोगे  

  उदासी से दूर बिंदास जीवन जियोगे | 

आशा  

 

 

10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! बहुत उम्दा रचना ! बहुत खूब !

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    1. सुप्रभात
      टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद साधना |

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  2. सुप्रभात
    मेरी रचना की सूचना के लिए आभार स्वेता जी |

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  3. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद शास्त्री जी |

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  4. बहुत सुन्दर सार्थक सृजन...।

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    1. सुप्रभात
      टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद सुधा जी |

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  5. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद ओंकार जी |

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