25 दिसंबर, 2020

जान सांसत में

 

जान सांसत में

एक जंगल में एक पेड़ के नीचे बहुत से पशु पक्षी एक साथ रहते थे |उन में आपस में कभी भी तकरार नहीं होती थी |सब मिल जुल कर रहते थे |आपस में हर समस्या का हल खोजने की क्षमता थी उनमें |किसी बात पर बहस नहीं करते थे |यदि किसी ने कोई बात कही होती उस पर पहले मनन चिंतन करते फिर उस कार्य को अंजाम देते |

   एक दिन दो व्यक्ति भी उसी पेड़ के नीचे आकर रुके |थोड़ी देर तो शांती रही फिर बिनाबात बहस में उलझे रहे |धीरे धीरे बहस इतनी उग्र हो गई कि दौनो में हाथापाई होने लगी |कुछ देर तो पशुपक्षी मूक दर्शक हो कर यह नजारा देखते रहे |पर फिर एक गाय ने बीच बचाव करने की कोशिश की |वह बोली आपस में क्यूँ लड़ रहे हो हमको देखो हम तो अलग अलग जाति के लोग है पर फिर भी आपस में नहीं झगड़ते |तुम तो दोनो ही मनुष्य हो |फिर भी एक दूसरे  के खून के प्यासे हो रहे हो |संसद का नजारा दिखा रहे हो

      तुम यहाँ से चले जाओ नहीं तो तुम्हारी यह आदत हमारे ऊपर भी बुरा असर डालेगी |यदि यहाँ रहना चाहते हो पहले मिलजुल कर रहना सीखो |तुमसे तो हम ही अच्छे हैं |हम  किसी भी प्रकार का बैर मन में नहीं रखते |अब बिचारे मनुष्यों की जान सांसत में  आगई वे तो राजनीति के अखाड़े से आए थे ||वह या तो चले जाएं या अपने स्वभाव में परिवर्तन करलें |दोनो ही सोच में पड़ गए अपनी गलती का एहसास हुआ और मन में पश्च्याताप |करें तो क्या करें |वे थे आदतों से लाचार |मन मसोस कर रह गए |

आशा

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर सन्देश देती सार्थक कहानी ! आजकल तो वाकई में इन नेताओं से मूक पशु पक्षी ही अधिक समझदार लगते हैं !

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  2. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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