मन में संग्राम छिड़ा है
समाज में विघटन हुआ है
पर कारण समझ ना आया
समान विचार धारा के लोगों में
आपस में आतंरिक मन मुटाव क्यूँ ?
जब भी बहस होती है
निजी स्वार्थ आपस में टकराते है
यही कारण समझ आता है
आतंरिक कलह का |
पर अक्सर ऐसा भी नहीं होता
कोई कारण नहीं होता बहसबाजी का
यह तो निश्चित होता है
व्यर्थ बहस से कोई हल नहीं निकलता |
पर तिल का ताड़ बनाने में
जो मजा आता है
एक नया समूह
विधटन कारियों का
बन ही जाता है |
यही आदत घर से जन्मती है
पहले घर में जोराजोरी
फिर उसी तरकीब को समाज में
नया रंग दिया जाता है |
अब दो हिस्सों में बट जाने से
नया बखेड़ा प्रारम्भ हो जाता है
मन में तटस्थ भाव नहीं आता
मन के भाव हुए जग जाहिर |
विघटित समाज को मुंह चिढाते
कमजोरियों से विरोधी लाभ लेते
जो भी एकता की बात करता
हंसी का पात्र बन जाता |
आशा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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बहुत सुन्दर सार्थक रचना ! बहसबाजी आजकल देश की संस्कृति बन चुकी है !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंकभी दूसरों के ब्लॉग पर भी कमेंट किया करो।
राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।
धन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री जी टिप्पणी के लिए |
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