23 जनवरी, 2021

मन में संग्राम छिड़ा है


मन में संग्राम छिड़ा है

समाज में विघटन हुआ है

पर कारण समझ ना आया

समान विचार धारा के लोगों में

आपस में आतंरिक मन मुटाव क्यूँ ?

जब भी  बहस होती है

निजी स्वार्थ आपस में टकराते है

यही कारण समझ आता है

आतंरिक कलह का |

पर अक्सर ऐसा भी नहीं होता

कोई कारण नहीं होता बहसबाजी का

यह तो निश्चित होता है

व्यर्थ बहस से कोई हल नहीं निकलता |

पर तिल का ताड़ बनाने में

 जो मजा आता है

एक नया समूह

 विधटन कारियों का

बन ही जाता है |

यही आदत घर से जन्मती है

 पहले घर में जोराजोरी

फिर उसी तरकीब को समाज में

नया रंग दिया जाता है |

अब दो हिस्सों में बट जाने से

नया बखेड़ा प्रारम्भ हो जाता है

मन में तटस्थ भाव नहीं आता

मन  के भाव हुए जग जाहिर |

विघटित समाज को मुंह चिढाते

कमजोरियों से विरोधी  लाभ लेते

जो भी एकता की बात करता

हंसी  का पात्र बन जाता |

 

आशा

 



  

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सार्थक रचना ! बहसबाजी आजकल देश की संस्कृति बन चुकी है !

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  2. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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  3. बहुत सुन्दर।
    कभी दूसरों के ब्लॉग पर भी कमेंट किया करो।
    राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।

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    1. धन्यवाद रूपचन्द्र शास्त्री जी टिप्पणी के लिए |

      हटाएं

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