17 फ़रवरी, 2021

अलबिदा सर्दी का मौसम

                                      अलबिदा मौसम सर्दी  का  अलबिदा

 इस  बार  बहुत कष्ट दिया तुमने

बिना गर्म कपड़ों के फुटपाथ  पर

रात कैसे गुजरती होगी  वहां रहने वालों से पूंछो |

एक दिन मुझसे ही भूल हुई

पूंछा तुम कैसे  ऐसी  सर्द  रात में  गुजारा  करती हो

उसके दोनो नयन भर आए

बस एक दिन यहाँ खड़े हो कर देखिये |

जान जाएंगी है कैसी हमारी जिन्दगी

दिन भर महनत करते हैं

फिर अपने घर को लौटते हैं

यह फुटपाथ ही है घरोंदा हमारा |

यदि पैसे हुए रूखा सूखा खा कर

यहीं चूल्हा जला कर खाना बनाते है

यदि नहीं मिला कुछ तब पानी पी सो जाते हैं

बच्चों की तरसती निगाहें देखी नहीं जातीं |

फटे टूटे कपडे देते हैं सहारा उन्हें

सर्दी से बचाव के लिए

भोर होते ही किसी पेड़ पर

 रात की रही शेष  रोटी खा कर

अपना सामान  समेट  कर टांग देते हैं |

बच्चों का क्या वे सड़क पर खेलते

खाते  ही  पल जाते हैं

कभी शाला का मुंह देखते ही नहीं

यदि दस्तखत करने हों अंगूठा लगाते हैं |

पर मेरे बेटे को यह अच्छ नहीं लगा

मम्मा इसे भी किताबें  दिला दो

मैं इसे पढ़ाऊंगा लिखना इसे सिखाऊँगा

यह भी शाला जाएगा मेरे साथ खेलेगा |

यह तो है एक कहानी

 न जाने ऐसे कितने लोग होंगें

उनकी व्यथा देख मन उदास हो गया

जीवन सरल नहीं होता यह आभास हो गया |

आशा



14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. मर्मस्पर्शी रचना ! न जाने कितने लोगों की व्यथा कथा है यह जिसका निदान आज के 'विकसित भारत' में भी किसीके पास नहीं !

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