सागर सी गहराई तुम में
हो इतने विशाल
कोई ओर न छोर |
पर मन पर नियंत्रण नहीं
जब भी समुन्दर में
तूफान आता है
हाहाकार मच जाता |
ऊंची ऊंची लहरें उठतीं
अनियंत्रित होतीं जातीं
सुनामी के नाम से
दिल दहल जाता है |
कितना विनाश होता
नतीजा क्या निकलता
मन दुखी हो जाता
जानने की इच्छा नहीं
आगे होगा क्या ?
कैसा होगा अंजाम ?
कहा नहीं जा सकता |
वही हाल तुम्हारा है
होते हो जब गंभीर
विशाल शांत सागर जैसे
बहुत प्यार आता है तुम पर
पर रौद्र रूप धारण करतें ही
बड़ा परिवर्तन आ जाता है |
केवल कटुता ही रह जाती
मन का प्यार
कपूर की तरह
कहीं उड़ जाता है |
आशा
सागर के स्वाभाव से तुलना .. बहुत गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद संगीता जी टिप्पणी के लिए |
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 26 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंसूचना के लिए आभार यशोदा जी |
सार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ! बढ़िया रचना ! सार्थक सृजन !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |
बहुत सुंदर आदरणीय आशा जी। बड़ी सहजता और सादगी से आपने बहुत बडी बात कह दी। सुनामी में परिवर्तित होना आसान है पर समंदर होना बहुत ही मुश्किल। सादर शुभकामनाएँ और होली की हार्दिक बधाई 🌹🌹🙏🙏❤❤
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रेणू जी टिप्पणी के लिए |
बेहतरीन रचना सादर नमन
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