05 मार्च, 2021

बीतना चाहा इस वसंत ने

 


बीतना चाहा इस  वसंत ने

 फागुनी हवा ने अपना हक़ माँगा  

वह देने को तैयार ही बैठा था  

लौटने का मन बनाया |

उसे इस बात का एहसास

पहले भी हुआ था पर उसे

अपने  मन का भ्रम जान

नजर अंदाज किया था |

पर्यावरण के परीवर्तन ने

 दी गवाही फागुन आने की

 वृक्षों के  पत्ते झरने लगे

 कुछ वृक्ष  ऐसे भी थे जिनमें

कलियाँ प्रस्फुटित होने लगी |

जैसे नव कलियों में से

झाँकते  पलाश के पुष्प

दुनिया देखने को थे बेकरार

खिले  पुष्प हुआ सुर्ख वृक्ष पूरा

अद्भुद सिंगार हुआ  धरती का |  

खेतों में नवल धान्य  तैयार

कर रहा प्रतीक्षा होली की

चंग पर थाप दे करते नृत्य 

 फागुनी  गाने तैयार कर

रसिया नए सुनने सुनाने को |

घर घर जाकर  गीत  गाना  

 फगुआ मांगना हुआ प्रारम्भ

सराबोर हुआ सारा समाज

फागुन के रंग में भीगा समाज

महिलाएं व्यस्त पकवान बनाना में |

मौसम का बदलता स्वभाव   

स्पष्ट नजर आता

गर्मीं की आहट भी कभी 

 मन को मुदित करती |

आशा

10 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह ! होली की पदचाप सुनाई देने लगी है अब ! बहुत सुन्दर कविता ! मन खिल गया ! सेमल और पलाश और अमलतास अब खिलने को आतुर हो उठे हैं !

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  2. बदलाव की पदचाप सुनाई दे रही . सुन्दर .

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  3. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद सगीता जी

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