देखे प्रेम के कई रूप
भाँती भाँती के रूप अनूप
भक्ति भाव उजागर होता
कभी माँ की ममता का बहाव होता
कभी मित्र भाव दिखाई देता
कभी निस्वार्थ प्रेम लहराता
अपना परचम फहराता
प्रकृति अपने पंख फैलाती
कभी देश प्रेम होता सर्वोपरी
किसे प्राथमिकता दे क्या है जरूरी
सोच सही मार्ग न दिखा पाता ||
केवल एहसास खुद से प्रेम का
देता आत्म मोह का नमूना कभी
यौवन से प्रेम उफन कर आता कभी
जिस समय हो अति आवश्यक
वही प्रेम समझ में आता |
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 04 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना के लिए धन्यवाद सर |
हटाएंबहुत सुन्दर और भावप्रवण गीत।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए आभार सहित धन्यवाद सर |
प्रेम पर तो पूरा शोध ही कर डाला आपने ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएं