26 अप्रैल, 2021

महामारी का रूप भयावह

 



                       

                         
          



                     अब तो बात फैल गई 

खुद के वश में कुछ न रहा 

कोविद कोविद मत कर बन्दे 

यह है उपज अपनी ही लापरवाई की |

जब भी कोई बात बताई जाती

सिरे से नकारा जाता उसको

जब जोर जबरदस्ती की जाती

पुलिस से  झूमाझटकी होती |

उन्हें  क्षति पहुंचाई जाती

इतना तक विचार नहीं होता

दिशा निर्देश होते है पालनार्थ

जनता की भलाई के लिए |

क्या है आवश्यक विरोध नियमों का

 हर उस बात का विरोध करना

जो किसी ने सुझाई हो

 सरकार को देश हित के लिए |

इतनी सुविधाएं देने पर भी  

नाकारा सरकार है कहा जाता

सरकार विरोधी नारे लगा

वातावरण दूषित किया जाता |

इससे हानि किसको होती

सरकार तो सजा नहीं पाती

केवल आर्थिक तंगी में फंसती जाती 

महामारी का रूप भयावह 

देख रूह काँप जाती |

अपनों को  गंवा कर दुःख झेलती 

आम जनता ही उलझनों में 

 फँस कर रह जाती |

आशा 

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