27 अप्रैल, 2021

एक दृश्य मनोरम

 


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नींद भरी अखियों से  देखा

हरी भरी धरती को रंग बदलते

मोर नाचता देखा पंख फैला  

झांकी सजती बहुरंगी पंखों से |

समा होता  बहुत रंगीन

जब कलकल निनाद  करता निर्झर

ऊपर से नीचे गिरता झरना  

नन्हीं जल की बूंदे बिखेरता |

धरा झूमती फुहारों  से होती तरबतर

सध्यस्नाना युवती की तरह

काकुल  चूमती जिसका मुखमंडल

स्याह बादल घिर घिर आते

आँखों का  काजल बन जाते |

डाली पर बैठे  पक्षी करते किलोल

व्योम में उड़ते पक्षी हो स्वतंत्र

चुहल बाजी करते उड़ते ऊपर नीचे

स्वस्थ स्पर्धा है उनका शगल  |

बागों में रंगबिरंगे पुष्प भी पीछे न हटते

मंद हवा के  झोंको के संग झूमते

तितली भ्रमर भी साथ  देते उनका

भ्रमर गीत गाते मधुर स्वर में |

सूर्य किरणे अपनी बाहें फैलाए आतीं

 धरती को लेना चाहतीं अपने आगोश में

उनकी कुनकुनी धूप जब पड़ती वृक्षों पर

ओस की  बूंदे ले  लेती विदा फूलों से |

आशा

 

 

 

 

12 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२७-०४-२०२१) को 'चुप्पियां दरवाजा बंद कर रहीं '(चर्चा अंक-४०५०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. सुप्रभात
      मेरी रचना की सूचना के लिए आभार अनीता जी |

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  2. सुप्रभात
    धन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |

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  3. सुप्रभात टिप्पणी के लिए धन्यवाद जितेन्द्र जी |

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  4. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद हिमकर जी |

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  5. अरे वाह ! प्राकृतिक सौन्दर्य का बहुत ही सुन्दर मनोरम शब्द चित्र ! बहुत सुन्दर रचना !

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  6. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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