28 अप्रैल, 2021

कोरोना की समस्या


 

इस बार भी सूनी सड़कें 

वीरान पड़े घर

 कोई भी हलचल नहीं इधर उधर

इस तरह का अजीब  सन्नाटा

कभी स्वप्न में भी न देखा था |

यह खामोशी  देख लगा ऐसा

जैसे कोई बड़ी दुर्घटना हुई है

 पर मालूम न था

 फिर से कोरोना मुंह फाड़े खडा था

 तभी लौक डाउन हुआ था |

दो टाइम की रोटी भी

 नसीब न होती थी  |

प्रवासी मजदूरों की दुर्गति

 देखी नहीं जा सकती  

बंद हुए  सब पहुँच  मार्ग 

अपने  गाँव घर पहुँचने के

पर उन्हें  बेचैनी थी

 अपने गाँव जाने की

अपनों से मिलने की   

यहाँ उनकी सद्गति 

नहीं हो सकती थी दूसरे प्रदेश में |

देश की आर्थिक व्यव्स्था 

चरमराने लगी है

जनता की  लापरवाही से 

 सावधानी न बरतने से

बनाए गए  नियमों का 

पालन न करने से

 बहुत विकराल रूप 

लिया है महामारी ने |

अभी तक नियंतरण नहीं  है

 इसकी रोक थाम में

अफवाहों की सीमा नहीं है

 इसके  निदान के लिए

हर बात का विरोध कियी जाता है

चाहे टीकाकरण हो या दवाएं |

 ईश्वर न जाने किस बात की

 सजा दे रहा है

जाने कब इससे छुटकारा मिलेगा

यह कठिन समय कैसे गुजरेगा

कुछ कहा नहीं जा सकता |

आशा

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद टिप्पणी के लिए ओंकार जी |

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29 -04-2021 को चर्चा – 4,051 में दिया गया है।
    आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    धन्यवाद सहित
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. सुप्रभात
    मेरी रचना की सूचना के लिए आभार दिलबाग जी |

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  4. आज की हकीकत को बयां करती समसामयिक रचना मैम!

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  5. सुप्रभात
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद मनीषा जी |

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  6. कोरोना ने सबकी जान साँँसत में डाल दी है ! काम पर जाएँ तो जान पर बन आती है न जाएँ तो बिना धन के परिवार पर बन आती है ! आम इंसान का जीना मुश्किल हो गया है ! बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना ! !

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    1. सुप्रभात
      साधना टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

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