चहरे से पर्दा हटा
किसी ने कहा था कभी
उसे तुम से प्यार है
तुमने जबाब दिया था
हंस कर |
आगे जाओ
यहाँ कोई स्थान रिक्त नहीं |
वह मन मसोस कर रह गया
आँखों में छलके अश्रु
चालाकी से उसने
उन्हें छिपा लिया |
पर तुमसे नहीं
छिप् पाए आंसू
इशारों से अपनी
व्यथा कथा बता गए |
मन ने सोचा
इतनी सी बात भी
न दिल में रख पाए
फिर खुद को बहुत
चतुर कैसे कहते
आशा
सुन्दर रचना ! बहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना। कैसे कोई किसी के मन की बात समझकर भी ना कह दे और जीवन भर हाथ मले।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंतिप्पस्नी के लिए आभार सहित धन्यवाद पुरुषोत्तम जी |
बहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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