26 मई, 2021

शाम ढलने लगी है


 

 शाम ढलने लगी है 

सूरज चला  अस्ताचल को 

व्योम में धुधलका हुआ है 

रात्रि का इंतज़ार है |

हूँ प्रसन्न उस इंतज़ार से

जब नींद का आगमन होगा

 नींद में विश्राम मिलेगा

बहुत राह देखी सुख निंदिया की |

अब कोई चिंता नहीं है

स्वप्न  मधुर होंगे जब आएँगे

खुद की कल्पना होगी सजग

मन मुदित होगा जब रानी बनूंगी |

अपने आप  ताना बाना बुनूंगी मैं 

  लेखक और सूत्रधार बन कर

 रोमांचक दृश्य जन्म लेगा उसका 

रंगीन समा हो जाएगा  स्वप्न  में |

रहां  अरमां मेरा  कि

 प्रमुख  नायिका की भूमिका हो मेरी   

सारे पात्र घूमें मेरे इर्दगिर्द

 मेरा ही  महिमा मंडन हो |

स्वप्न में यह आकांक्षा  भी

 पूर्ण हो मेरे मन की

मैं सोजाऊं  सुख निंदिया में

 खो जाऊँ सपनों में

 

आशा


 

 

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर ( 3041...दोषारोपण और नाकामी का दौर अब तीखा हो चला है...) गुरुवार 27 मई 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सुप्रभात
      मेरी रचना को शानिल करने के लिए आभार रवीन्द्र जी |

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  2. सुन्दर कल्पना ! सार्थक सृजन !

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  3. पूरी निद्रा का महत्व बहुत है, स्वस्थ तन और मन के लिये। सुन्दर रचना।

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  4. सुप्रभात
    धन्यवाद प्रवीण जी टिप्पणी के लिए |

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  5. अपने आप ताना बाना बुनूंगी मैं

    लेखक और सूत्रधार बन कर

    रोमांचक दृश्य जन्म लेगा उसका

    रंगीन समा हो जाएगा स्वप्न में |---वाह बहुत ही गहरी रचना।

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  6. तन मन स्वस्थ और प्रसन्न हो तो ढलती शाम भी बड़ी सुहावनी होती है
    बहुत सुन्दर

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  7. "...
    अपने आप ताना बाना बुनूंगी मैं
    लेखक और सूत्रधार बन कर
    रोमांचक दृश्य जन्म लेगा उसका
    रंगीन समा हो जाएगा स्वप्न में |
    ..."
    .........वाह! बहुत खूब। मन मायूस करने से अच्छा है...हम शाम का इंतज़ार करें और अपने सपनों को निंदों के माध्यम से जी लें।
    बहुत सुन्दर रचना।

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  8. सुप्रभात
    प्रकाश जी टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

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