सूरज चला अस्ताचल को
व्योम में धुधलका हुआ है
रात्रि का इंतज़ार है |
हूँ प्रसन्न उस इंतज़ार से
जब नींद का आगमन होगा
नींद में विश्राम मिलेगा
बहुत राह देखी सुख निंदिया की |
अब कोई चिंता नहीं है
स्वप्न मधुर होंगे जब आएँगे
खुद की कल्पना होगी सजग
मन मुदित होगा जब रानी बनूंगी |
अपने आप ताना बाना बुनूंगी मैं
लेखक और सूत्रधार बन कर
रोमांचक दृश्य जन्म लेगा उसका
रंगीन समा हो जाएगा स्वप्न में |
रहां अरमां मेरा कि
प्रमुख नायिका की भूमिका हो मेरी
सारे पात्र घूमें मेरे इर्दगिर्द
मेरा ही महिमा मंडन हो |
स्वप्न में यह आकांक्षा भी
पूर्ण हो मेरे मन की
मैं सोजाऊं सुख निंदिया में
खो जाऊँ सपनों में
आशा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर ( 3041...दोषारोपण और नाकामी का दौर अब तीखा हो चला है...) गुरुवार 27 मई 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंमेरी रचना को शानिल करने के लिए आभार रवीन्द्र जी |
सुन्दर कल्पना ! सार्थक सृजन !
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जवाब देंहटाएंThanks for the comment
पूरी निद्रा का महत्व बहुत है, स्वस्थ तन और मन के लिये। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रवीण जी टिप्पणी के लिए |
अपने आप ताना बाना बुनूंगी मैं
जवाब देंहटाएंलेखक और सूत्रधार बन कर
रोमांचक दृश्य जन्म लेगा उसका
रंगीन समा हो जाएगा स्वप्न में |---वाह बहुत ही गहरी रचना।
Thanks for the comment
हटाएंतन मन स्वस्थ और प्रसन्न हो तो ढलती शाम भी बड़ी सुहावनी होती है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
"...
जवाब देंहटाएंअपने आप ताना बाना बुनूंगी मैं
लेखक और सूत्रधार बन कर
रोमांचक दृश्य जन्म लेगा उसका
रंगीन समा हो जाएगा स्वप्न में |
..."
.........वाह! बहुत खूब। मन मायूस करने से अच्छा है...हम शाम का इंतज़ार करें और अपने सपनों को निंदों के माध्यम से जी लें।
बहुत सुन्दर रचना।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंप्रकाश जी टिप्पणी के लिए धन्यवाद |