मेरी आँखों में बसी
तेरी मनमोहनी सूरत
कितनी भोलीभाली
मासूम सी दीखती |
क्या मन भी तेरा
है वैसा ही कोमल
सीरत है मीठी सी
आनन पर भाव स्पष्ट दीखते
|
बदन तेरा नाजुक
खिलती कली सा है
निगाहें नहीं ठहरतीं
अभिनव सौन्दर्य पर |
यह सौगात मिली कहाँ
से
ईश्वर की कृपा द्रष्टि रही
क्या तुझ पर ?
या कोई पुन्य कार्य
किये थे
पूर्व जन्म में जो
यह
पुरस्कार मिला बदले
में |
तनिक भी गरूर नहीं
है सौम्य सुशील सुघड़
तेरे इन गुणों पर
है न्योछावर मेरा मन |
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१६-०६-२०२१) को 'स्मृति में तुम '(चर्चा अंक-४०९७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार अनीता जी |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंकौन फ़िदा न होगा इतने मासूम सौन्दर्य पर ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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