06 जून, 2021

जिन्दगी चली ट्रेन सी


 

जिन्दगी  चली  ट्रेन सी  

  पटरियों पर जैसे ट्रेन चली 

कभी चलती सरपट

तो कभी रुक जाती स्टेशन पर |

चाय वाले की आवाज सुनाई देती

कभी आज की ताजा खबर

सुनाने को बेचैन अखवार वाले का

 स्वर मुखर होता |

तभी धीरे से एक  स्टेशन से

अगले पर जाने को

 खिसकती ट्रेन सी जिन्दगी

गति पकड़ती |

स्टेशन से आगे जाने के लिए

कुछ कर्तव्य निभाने के लिए

जहां तक संभव हो कोई कार्य अधूरा

 नहीं छोड़ना चाहती जिन्दगी |

एक समय ऐसा आता

अंतिम स्टेशन पर  पहुँच कर

 थम जाती जिन्दगी रुकी ट्रेन की तरह

 है कमाल की जिन्दगी |

कितने भी व्यवधान आएं

आगे बढ़ती जाती

 गंतव्य तक पहुँच कर ही 

 दम लेती जिन्दगी |

आशा

9 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िंदगी की यही रीत है ! ज़िंदगी की गाड़ी अपनी मंजिल पर ही रुकती है ! बीच में नहीं !

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    1. सुप्रभात
      धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (07-06-2021 ) को 'शूल बिखरे हुए हैं राहों में' (चर्चा अंक 4089) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      मेरी रचना की सूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद |

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    2. जीवनदर्शन से परिपूर्ण सुंदर रचना 🙏

      हटाएं
  3. सुप्रभात
    धन्यवाद शरद जी टिप्पणी के लिए |

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