जिन्दगी चली ट्रेन सी
पटरियों पर जैसे ट्रेन चली
कभी चलती सरपट
तो कभी रुक जाती स्टेशन पर |
चाय वाले की आवाज सुनाई देती
कभी आज की ताजा खबर
सुनाने को बेचैन अखवार वाले का
स्वर मुखर होता |
तभी धीरे से एक स्टेशन से
अगले पर जाने को
खिसकती ट्रेन सी जिन्दगी
गति पकड़ती |
स्टेशन से आगे जाने के लिए
कुछ कर्तव्य निभाने के लिए
जहां तक संभव हो कोई कार्य अधूरा
नहीं छोड़ना चाहती जिन्दगी |
एक समय ऐसा आता
अंतिम स्टेशन पर पहुँच कर
थम जाती जिन्दगी रुकी ट्रेन की तरह
है कमाल की जिन्दगी |
कितने भी व्यवधान आएं
आगे बढ़ती जाती
गंतव्य तक पहुँच कर ही
दम लेती जिन्दगी |
आशा
Thanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThe
जवाब देंहटाएंThanks for comments
ज़िंदगी की यही रीत है ! ज़िंदगी की गाड़ी अपनी मंजिल पर ही रुकती है ! बीच में नहीं !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (07-06-2021 ) को 'शूल बिखरे हुए हैं राहों में' (चर्चा अंक 4089) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सुप्रभात
हटाएंमेरी रचना की सूचना के लिए आभार सहित धन्यवाद |
जीवनदर्शन से परिपूर्ण सुंदर रचना 🙏
हटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शरद जी टिप्पणी के लिए |