24 जून, 2021

मेरे मन की (निहारिका में )

 


 मेरे मन की -(निहारिका काव्य संग्रह -१३ )

बचपन से ही मुझे लिखने शौक था| पर जैसे जैसे उम्र बढ़ी  व्यस्तता बढ़ती गई| लिखने के लिए समय का अभाव होने लगा| पर रिटायर होने के बाद लगा कि कुछ करना चाहिए जिससे समय का सदुपयोग हो सके| धीरे धीरे शौक आदत में बदला और अंतरमन में स्वतः  भाव आने लगे| 

       कंप्यूटर चलाने में आनंद आने लगा |घर से  भी बहुत प्रोत्साहन मिला| इस कार्य के लिए मेरी छोटी बहन साधना वैद और मेरे हमसफर  श्री हरेशजी का भी भरपूर सहयोग रहा| अभी तक मेरी बारह कविता संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं| यह तेरहवा कविता संग्रह “निहारिका” आपके सन्मुख है| मैंने अधिकाँश विषयों पर कविता के माध्यम से अपने भावों को अभिव्यक्त करने  की कोशिश की है| 

  मुझे आसपास की प्रकृति में विद्यमान घटनाओं पर लेखन  बहुत अच्छा लगता है |  

शाम ढलने लगी है 

सूर्य चला अस्ताचल को 

व्योम में धुधलका हुआ है 

रात्रि का इन्तजार है (श्याम ढलने लगी है )

     मेरी कुछ रचनाएं जो मुझे बहुत पसंद हैं बानगी देखिये –भरमाया हुआ ,मन अशांत ,अधिकार कर्तव्य ,जन्मदिन मेरा ,जीवन की डगर ,काश कुछ ऐसा हो जाए, निहारिका , एक छत के नीचे, मन में संग्राम छिड़ा है, आराधना हैं| हाइकु लेखन में अनोखा आनंद आता है| 

कुछ हाइकु की बानगी -

१) है अभिलाषा 

किसी के काम आऊँ

 रहूँ सफल 

२) अंधेरी रात 

हलकी बरसात 

दिल खुश है 

३) मोर नाचता 

छम छम करता 

पंख फैलाए 

४) नटनागर 

बंसी का है बजैया

मन हरता  


कविताओं की कुछ मन को छूती पंक्तियाँ देखिये - 

है जब तक 

प्राणों का आकर्षण 

भरमाया सा 

मद मोह माया में| (भरमाया हुआ)

शारीरिक चोट तो सही जा सकती है 

मन को लगी चोट सहन नहीं होती| (वेदना और विरह)

पैरों में बंधन क्यों 

 बेड़ियां लगी है 

हाथ भी बंधे हैं खुलते नहीं हैं| (मन चंचल)

   सही मूल्यांकन मेरी रचनाओं का पाठक गण ही कर पाएंगे| इसलिए आपके समक्ष प्रस्तुत है मेरा नया कविता संग्रह “निहारिका” है|

(आशा लता सक्सेना )

 




1 टिप्पणी:

  1. वाह वाह वाह ! बहुत ही सुन्दर सार्थक पक्तियां उद्धृत की हैं ! पुस्तक कब हाथों में आयेगी उत्कंठा और बढ़ गयी है ! सुन्दर उद्बोधन !

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