कुछ तुमने कहा है
क्या मैंने सून लिया
कहीं कोई चूक
हो गई है |
कोई अर्थ न निकला
इस वार्ता का
अर्थ का अनर्थ हुआ
देख कर हँसी थम न सकी |
इस तरह की बातें
तुम्हें शोभा नहीं देतीं
मुझ में भी समझ न थी
अब हूँ दुखी हँसी पर
सोच समझ कर
जब बोलो शब्दों को तोल कर बोलो
मन को सदमा न पहुंचेगा |
मेरा मन मुझसे
न सम्हल पाया
पर फिर भी सोचा तुम्हें
करदूं सतर्क शायद कुछ लाभ हो |
कटु भाषण कर्णकटु हो कर
मन को दुःख पहुंचाता है
भलाई इसी में है दौनों की
तटस्थ भाव से सोचे समझें |
आशा
आशा
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२६-0६-२०२१) को 'आख़री पहर की बरसात'(चर्चा अंक- ४१०७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
Thanks for the information of the p post
हटाएंवाह ! लाख टके की बात की आपने ! जब भी बोलेन, तोल मोल कर ही बोलें ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुंदर अहसास ।
जवाब देंहटाएंज़ुबाँ का इस्तेमाल ही हमारी सामाजिक दृष्टिकोण बनाता चला जाता है ।
सुंदर लेख
सादर
Thanks for the comment sir
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक एवं सारगर्भित सृजन।