तेरा जलवा है ही ऐसा
निगाहें टिकती नहीं
तेरे मुखमंडल पर
फिसल जाती हैं उसे चूम कर |
कितनी बार कहा तुम से
अवगुंठन न हटाओ अपने आनन से
कोई बचा न पाएगा तुम्हे
जमाने की बुरी नजर से |
कब तक कोई बचाएगा तुम्हे
दुनीया की भूखी निगाहों से
किसी की जब निगाहें
भूखे शेर सी तुम्हें खोजेंगी|
तुम मदद की गुहार करोगी
चीखोगी चिल्लाओगी सहायता के लिए
पर कोई भी सुन न पाएगा
जब तक खुद सक्षम न होगी |
आज के युग में कमजोरी का लाभ
सभी उठाना चाहते हैं
दुनीया का सामना करना होगा
तभी सर उठाकर जी पाओगी |
हो आज की सक्षम नारी
यह कहना नहीं है मुझे
केवल इशारा ही काफी है
बताने की आवश्यकता नहीं है |
सर तुम्हारा गर्व से उन्नत होगा
आनन दर्प से चमक जाएगा
सफलता कदम चूमेगी तुम्हारे
हो आज की नारी कमजोर नहीं हो |
घूंघट हटे न हटे पर
चहरे पर आव रहे
नयनों में हो शर्म लिहाज
है यही अपेक्षा तुमसे |
आज भी हो सक्षम और सफल
कल होगी और अधिक हिम्मत
किसी से न भयभीत हो
दृढ़ कदम हो समाज में जी पाओगी |
आशा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 13 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार सर मेरी रचना की सूचना के लिए |
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर जोश जगाती कविता।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम।
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए आभार सहित स्वेता जी |
दो टूक बात . सबसे अच्छा आशीर्वाद - स्वावलंबी बनो.
जवाब देंहटाएंआशाजी, पढ़ कर अच्छा लगा.
Thanks for the p o st
जवाब देंहटाएंखुल कर जीना होगा, क्यों मन को मारे हम?
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंसंदेश देती सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंअवगुंठन हटेगा तभी वो सक्षम बनेगी तभी वो दुनिया का सामना करेगी।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
नई रचना पौधे लगायें धरा बचाएं
Thanks for the comment sir
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