10 जुलाई, 2021

नारी --"एक अपेक्षा तुमसे"


                                                                तेरा जलवा है ही  ऐसा

निगाहें टिकती नहीं

तेरे मुखमंडल पर

फिसल जाती हैं उसे चूम कर |

कितनी बार कहा तुम से

अवगुंठन न हटाओ अपने आनन से

कोई बचा न पाएगा तुम्हे

जमाने की बुरी नजर से |

कब तक कोई बचाएगा तुम्हे

दुनीया की भूखी  निगाहों से

किसी की जब निगाहें  

  भूखे शेर सी तुम्हें खोजेंगी|

तुम मदद की गुहार करोगी  

 चीखोगी चिल्लाओगी सहायता के लिए  

पर कोई भी सुन न पाएगा

जब तक खुद सक्षम न होगी |

आज के युग में कमजोरी का लाभ 

 सभी उठाना चाहते हैं  

 दुनीया का सामना करना होगा

तभी सर उठाकर जी पाओगी |

हो आज की सक्षम नारी

यह कहना नहीं है मुझे  

केवल इशारा ही काफी है

 बताने की आवश्यकता नहीं है |

सर तुम्हारा  गर्व से उन्नत होगा

आनन दर्प से चमक  जाएगा  

सफलता कदम चूमेगी तुम्हारे

हो आज की नारी कमजोर नहीं  हो | 

घूंघट हटे न हटे पर 

चहरे पर आव रहे 

नयनों  में हो  शर्म लिहाज 

है यही अपेक्षा तुमसे  |

आज भी हो सक्षम और सफल 

कल होगी और अधिक हिम्मत 

किसी से न भयभीत हो

 दृढ़ कदम हो समाज में जी पाओगी |

आशा

16 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 13 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आभार सर मेरी रचना की सूचना के लिए |

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  3. बहुत सुन्दर जोश जगाती कविता।

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
    सादर प्रणाम।

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  5. सुप्रभात
    धन्यवाद टिप्पणी के लिए आभार सहित स्वेता जी |

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  6. दो टूक बात . सबसे अच्छा आशीर्वाद - स्वावलंबी बनो.
    आशाजी, पढ़ कर अच्छा लगा.

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  7. खुल कर जीना होगा, क्यों मन को मारे हम?

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  8. अवगुंठन हटेगा तभी वो सक्षम बनेगी तभी वो दुनिया का सामना करेगी।
    सुंदर रचना।
    नई रचना पौधे लगायें धरा बचाएं

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