सात अश्वों के रथ पर सवार
प्रातः चला आदित्य देशाटन को
राह के नजारे मन को ऐसे भाए
वहीं ठहरने का मन बनाया |
पर समय के साथ ठहर न पाया
इस युग की देखी भागमभाग
साथ सबके दौड़ न पाया
कल दौड़ने का वादा लिया खुद से |
व्योम पर जब दृष्टि पडी
काले कजारे बादलों ने घेरा उसे
सारी चमक दमक लुप्त हो गई
अन्धकार ने ऐसा घेरा उसे |
साथ रश्मियों ने भी छोड़ा
अपने वादे को पूरा कर न सका
उलझन बढ़ती गई घटाएं गहराने से
वह हारा बदल दिशा चल दिया अन्यत्र |
सोचा उसने कोई नई बात नहीं है
बाधाएं आती रहती हैं राह में
किये बादों को पूरा करने में
सांझ हुई वह चल दिया अस्ताचल को |
आशा
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सूर्योदय का बहुत सुन्दर चित्रण ! बारिश की भीनी खुशबू से सिक्त सुन्दर रचना !
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