21 जुलाई, 2021

चला आदित्य भ्रमण को

 सात अश्वों  के रथ पर  सवार

प्रातः चला आदित्य देशाटन को

राह के नजारे मन को ऐसे भाए

वहीं ठहरने का मन बनाया |

पर समय के साथ ठहर न पाया 

इस  युग की  देखी भागमभाग

 साथ सबके  दौड़ न पाया

कल दौड़ने  का वादा लिया खुद से   |

व्योम  पर जब दृष्टि  पडी

काले कजारे  बादलों ने घेरा उसे

सारी चमक दमक  लुप्त हो गई  

अन्धकार ने ऐसा  घेरा उसे |

  साथ रश्मियों ने भी  छोड़ा

अपने  वादे को  पूरा कर न सका  

उलझन बढ़ती गई घटाएं गहराने से

वह हारा बदल दिशा चल दिया अन्यत्र |

  सोचा उसने  कोई नई बात नहीं है

बाधाएं आती रहती हैं राह में

 किये बादों को पूरा करने में

सांझ  हुई वह  चल दिया अस्ताचल को |

आशा

 

 

 

 

 

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1 टिप्पणी:

  1. सूर्योदय का बहुत सुन्दर चित्रण ! बारिश की भीनी खुशबू से सिक्त सुन्दर रचना !

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