04 जुलाई, 2021

यादों की बरात चली


यादों  की बरात चली

बैंड  बाजों के साथ

मैं चला ले कर जखीरा साथ

बीते कल की यादों का |

घोड़े पर बैठ कर दीखती

 क्या शान  है

मधुर  स्वर में बज रहा

हर साज आज है |

पीछे चले घरवाले

गीत संगीत का आनंद लेते

लोकगीतों का मजा उठाते

 दूरी मालूम ही न पडी |

दुलहन का घर आते ही

हुई थकान पर क्या करूं

इतना तो चलना बनाता ही है

 बिना दूल्हा  क्या रौनक होती  बारात की |

हर पल याद पुरानी आती

पुरानी घटनाएं

 मन पर हो सबार

उन्हें और उछाल देतीं |

मन का बोझ तिल भर भी

 कम न होता

तुम्हारी कमी कैसे पूरी होती

तुम्हारा स्थान  भी 

कोई ले नहीं सकता  |

आशा

 

 

 

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