चला था खोज में जोश से भरा
कुछ कर गुजरने की चाह में
अखवार के पन्नों की सुर्ख़ियों में
रहने का स्वप्न सजाए मन में |
सर्द हवाओं से उत्साह ठंडा हुआ
पर हार न मानी उसने
गर्म चाय ने ऊर्जा प्रदान की थोड़ी
दुगुना जोश बढ़ाया पैरों ने गति पकड़ी |
जैसे ही पहुंचा पास लक्ष्य के
मन का उत्साह चौगुना हुआ
अपनी सफलता को समीप पाया
हाथ बढ़ा उसे छूना चाहा |
प्रयत्न की सफलता ने जितनी खुशी दी
वह बाँट न पाया अपनों से
क्यों कि था वह दूर बहुत उनसे
उसने दूर भाष पर सांझा किया |
राह पकड़ी फिर अपनों से मिलने के लिए
राह में जब देखा अखवार
खुद को पहले पन्ने पर देख
दिल बल्लियों उछला स्वप्न साकार होता देख |
आशा
दिल बल्लियों उछला स्वप्न साकार होता देख |
अच्छी लगी सफलता की यह कथा ! वाह !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
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