कॉपी के कोरे पन्ने
कोरे ही रह गए
मगर कुछ
लिख नहीं पाई |
यत्न तो बहुत किये
पर परिपक्वता
न मिली लेखन को
मेरी नादानी से |
मन विषाद से भरा
असंतोष जगा
भावों को समेट नहीं
पाई
शब्दों के जालक में |
बहुत मन था
कुछ विशेष करने का
सब से हट कर
कुछ लिखने का |
ऐसा न हो पाया
उम्र के तकाजे ने
धोखा दिया अधबीच में
भाग्य साथ न दे
पाया|
स्वास्थ्य ने साथ न दिया
भावों को उड़ान न दे पाई
अभिव्यक्ति कुंठित हुई
खुद भावों में सिमटी रही |
जब आत्म मंथन किया
किसी हद तक
सफल तो हुई पर
उत्तंग शिखर तक ना पहुंची |
जो कमी लेखन
में रही
मैं जान तो गई
फिर भी उससे दूरी
बना न सकी |
बोई बेल को आज तक
परवान न चढाया मैंने
समय पा वह मुरझाई
फल न दे पाई |
कोरे पन्ने कॉपी के
कोरे ही रह गए
मेरी पुस्तिका के
पन्ने सारे भर न पाए |
आशा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 17 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंThanks for the information of the p post
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक।
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना ! अपने लिखे से लेखक को कभी संतोष कहाँ होता है ! उसका मूल्य तो पाठक जानते हैं ! आपका लेखन बहुत उत्कृष्ट है !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंजी कुछ मामले में मन की असंतुष्टि भी जायज है।वह भी लेखन क्षेत्र में।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
हटाएंस्वास्थ्य ने साथ न दिया
जवाब देंहटाएंभावों को उड़ान न दे पाई!
खराब स्वास्थ्य के सामने सारी परेशानी छोटी लगती हैं! चाह तो बहुत कुछ करने का है पर पता नहीं स्वास्थ्य और जिंदगी कब तक साथ दे!सपने पहले पूरे होगें या जिंदगी पता ही नहीं! बस यूँ समझ लो जिंदगी पत्ते पर पड़ी बारिश की उस बूंद की तरह है जिसके गिरते ही नामों निशान खत्म हो जायेगा!
हृदयस्पर्शी रचना!
Thanks for the comment
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