जन्म मरण के बीच
मीलों का फासला
कैसे किसी ने तय किया
वही जानता होगा |
आज तक कोई
वहां जा कर
लौट न पाया
बड़े प्रयत्नों से
भूले भटके जो लौटा |
बड़ा विश्लेषण
वहां का करता
बड़े चाव से सत्य का
चित्रण करता |
किसी ने विवरण
दिया भी तो
नमक मिर्च लगा कर
किस्सा सुनाया |
है कितनी सच्चाई
उस विवरण में
आज तक
जान न पाई |
उत्सुकता और बढ़ी
बहुत अध्ययन किया
पर किसी निष्कर्ष पर
न पहुच पाई |
फिर हार कर
सोच लिया
बिना स्वयं गए
स्वर्ग के दर्शन नहीं होते |
आत्मा कहाँ विचरण करती
कहाँ अपना घर खोजती
फिर से दुबारा
कोई न जानता |
आशा
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-08-2021 ) को 'नूतन के स्वागत-वन्दन में, डूबा नया जमाना' ( चर्चा अंक 4158 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
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हटाएंसुप्रभात
हटाएंआभार सर मेरी रचना की सूचना देने के लिए |
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंजिन बातों का जवाब न धर्म के पास है न विज्ञान के पास न आध्यात्म के पास उन पर माथापच्ची करने से क्या लाभ ! सारी ऊर्जा उन चीज़ों में लगाना चाहिए जिनसे हमारा आज सुधरे !
जवाब देंहटाएंसाधना धन्यवाद टिप्पणी के लिए |
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