04 अगस्त, 2021

कुछ नया लिखूं


 

तैरती  भावों के सागर में

अनोखा एहसास जगा मन में

 भावों ने करवट बदली

नवीन शब्दों का खजाना मिला|

मन का  उत्साह  तरंगित हुआ

प्यार का फसाना तो सब गाते हैं

सत्य का सामना कम ही कर पाते हैं 

कलम जब गति पकड़ती है  

नई रचना उभर कर  आती है | 

रस छंद अलंकार से दूर बहुत

 शब्दों को लिपि बद्ध कर

एक नई रचना का रूप दिया 

 खुद ही प्रसन्न हो कर जो लिखा  

मन को बड़ा  सुकून मिला |

प्राकृतिक आपदा का शोर आज कल  

अधिक सुनाई देता

उस पर  लिखने को प्रेरित करता |

  उतंग लहरे महा सागर की 

जब  उत्श्रंखल  होतीं

किनारे के पेड़ टूटते बहनें लगते

 रास्ते अवरुद्ध करते 

 तवाही इतनी होती कि

 भुलाना मुश्किल होता

वर्षों के  बसे बसाए  घर

 पल भर में नष्ट हुए   |

नेत्रों से बहते अश्रु

 थमने का नाम न लेते

गहरी सोच उभर कर आती

पर निदान खोज न पाती

 आधी उम्र घर  बनाने में बीती 

फिर से सवारने में तो 

सारा जीवन समाप्त हो जाए |

यह कैसा न्याय प्रभू तुम्हारा

क्यों आम आदमी ही पिसता जाता

धनवानों से दूर कष्ट रहते

जब भी आपदा आती 

वे पहले से किनारा कर लेते |

वही शब्द वही कहानी

शब्दों की हेराफेरी सामने आती 

कुछ भी नया नही है 

फिर भी लिखने की फितरत बहुत पुरानी है | 

आशा







फिर भी लिखने की फितरत बहुत पुरानी है |

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    धन्यवाद टिप्पणी के लिए आलोक जी |

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  2. यह नियति का सबसे क्रूर मज़ाक है ! प्राकृतिक आपदाओं के साथ आम इंसान की जीवन भर की मेहनत पल भर में काल कवलित हो जाती है ! आजकल दरकते पहाड़ और बाढ़ की ख़बरों ने सचमुच हिला रखा है !

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  3. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

    जवाब देंहटाएं

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