29 सितंबर, 2021

मनोभाव मेरे


तुम मेरे ही रहो

मैं हूँ तुम्हारे लिए

 कोई और न हो दूसरा

 हम  दौनों के  मध्य |

कोई बाधा बन उभरे     

यह मुझे  सहन नहीं    

मन चाहे पर मेरा अपना ही

केवल  अधिकार रहे |

जिस पर हक हो मेरा  

उसे  किसी से बाटूं

नहीं स्वीकार मुझे

कमजोरी कहो या तंगदिली  |

अपने स्वभाव में  

परिवर्तन कैसे लाऊँ

कभी जाना नहीं

किसी ने भी  सुझाया नहीं |

यही कमीं रही मुझमें

जिसे आज तक

 बोझे सा उठाए रहती हूँ

उस से बच  नहीं पाई |

आशा

 

 

 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा 30.09.2021 को चर्चा मंच पर होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

    जवाब देंहटाएं
  2. यह कमजोरी नहीं विशेषता है ! सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  3. धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए|

    जवाब देंहटाएं

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