14 अक्टूबर, 2021

क्या सोचें ?

 


    

कब तक सोचें कितना सोचें

 कोई तो सीमा होगी  इसकी

पर  मस्तिष्क हो रिक्त जब

जीवन अधूरा लगता है |

दिन रात सोचने की बीमारी 

अब आदत सी हो गई है

किसी ने सत्य  कहा है

खाली दिमाग शैतान का घर |

दिल से सोचें अथवा दिमाग से

यादों का सलीब लटकता रहता

बोझ बन कर हर हाल में

 मन  विचलित  करता है | 

कभी सोचकर देखा है क्या ?

यदि हो खाली दिमाग

होगा क्या हश्र हमारा खुद का |

अतीत पीछे भाग रहा  है

कोई बच न पाया इससे

सुख दुःख की सीमा नहीं  है

हर समय अशांति  रहती  है |

कोई तो हल होगा इसका

जब शान्ति जीवन का हिस्सा होगी

 ऐसा होगा जाने कब 

जीवन शैली संतुलित होगी |

आशा

 

12 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५ -१०-२०२१) को
    'जन नायक श्री राम'(चर्चा अंक-४२१८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. सुप्रभात
      आभार अनीता जी मेरी रचना की सूचना के लिए |

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  2. दिल से सोचें अथवा दिमाग से
    यादों का सलीब लटकता रहता
    बोझ बन कर हर हाल में
    मन विचलित करता है |
    आपकी हर एक रचना बहुत ही अच्छी और सुंदर होती है

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    उत्तर
    1. सुप्रभात
      धन्यवाद मनीषा जी टिप्पणी के लिए |दशहरे की शुभ कामनाएं |

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  3. खाली दिमाग शैतान का घर
    क्या सोचें कितना सोचें...
    बहुत सुन्दर।

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  4. सुप्रभात
    धन्यवाद सुधा जी टिप्पणी के लिए |

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  5. कभी कभी दिमाग को भी विश्राम देना चाहिए ! थका मस्तिष्क कभी सकारात्मक बात नहीं सोच सकता !

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  6. सुप्रभात
    धन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |

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