भ्रमर तुम फूलों पर क्यों मंडराते
उनके मोह में बंध कर रह जाते
उन पुष्पों में ऐसे बंधते
कभी बंधन मुक्त न हो पाते |
तुमसे तितलियाँ हैं बुद्धिमान बहुत
पुष्पों से मधु रस का आनंद लेतीं
और दूसरे के पास उड़ जातीं
होती स्वतंत्र किसी बंधन में न बंधती |
इतनी मोहक रंगबिरंगी तितलियाँ जब उड़तीं
सुन्दर छवि हो जाती वहां की
एक फूल से दूसरे पर जाने से
मकरन्ध की सुगंध बगिया में उड़ती |
भवरे तुम काले हो सुन्दर नहीं
तितलियों से क्या तुलना करते
तुम्हारा गुंजन भी नहीं मधुर
जब फँसते माली के चंगुल में तब पछताते |
आशा
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-10-21) को "/"तुम पंखुरिया फैलाओ तो(चर्चा अंक 4222) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
सुप्रभात
हटाएंआभार कामिनी जी मेरी रचना को चर्चामंच में आज के अंक में
शामिल करने के लिए |
सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
प्रकृति का सुंदर वर्णन
जवाब देंहटाएंThanks for the comment anita
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंयथार्थ
जवाब देंहटाएंउत्तम आ0
धन्यवाद अनीता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंभंवरे और तितलियों के साथ फूलों से मधु चुराने का सुंदर रूपक!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
जवाब देंहटाएंThanks for the comment sir
जवाब देंहटाएंवाह ! कितनी पैनी दृष्टि है आपकी ! सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिए धन्यवाद साधना |